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________________ 1104 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि वंदइ नमसइ वं० 2 ता सयमेव पंच महत्वयाई आरुहेइ.२ ता गोयमाइ समणे णिग्गंथे णिग्गंथीओ य खामेइ 2 ता तहारूवेहि कडाईहि थेरेहि सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं 2 दुरूहइ 2 ता सबमेव मेहघणसण्णिगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ 2 त्ता उच्चारपासवगर्भाम पडिलेहे 2 ता दब्भसंथारगं संथरइ 2 ता दभ. संथारगं दुरूहइ 2 ता पुरस्थाभिमुहे संपलियंकणिसण्णे करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी--णमोत्थ णं अरिहंताणं भगवंताणं नाव संपत्ताणं, णमोत्थ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स / वंदामि णं भगवंतं तत्यगयं इहगए पासउ मे भगवं तत्थ. गए इहगयं-तिकट्ट वंदई णमंसइ वं० २त्ता एवं वयासी-पूवि पि य गं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए मसावाए अदिण्णादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे माणे माया लोहे पेज्जे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेसुष्णे परपरिवाए अरइरइ मायामोसे मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खाए / इयाणि पिणं अहं तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि सव्वं असणपाणखाइमसाइमं चउन्विहंपि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए / जंपि य इमं सरीरं इठं कंतं 'पियं जाव विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतीतिकटु एयं पि य णं चरमेहि ऊसासणीसासेहि वोसिरामि तिकटु सलेहणाझसणाझसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ / तए गं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अणगारस्स अगिलाए वेयावडियं करेंति / तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाई दुवालसवरिसाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता ट्ठि भत्ताई अणसणाए छेएत्ता आलोइयपडिक्कते उद्धिय. सल्ले समाहिपत्ते आणपुग्वेणं कालगए / तए गं ते थेरा भगवंतो मेहं अणगारं आणपुव्वेणं कालगयं पासेंति 2 ता परिणिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति 2 ता मेहस्स आयारभंडगं गेण्हति 2 ता विउलाओ पव्वयाओ सणियं 2 पच्चोरहति 2 ता जेणामेव गुणसिलए चेइए जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छति 2 ता समणं भगवं महावीरं वदंति णमंसंति वं० 2 ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे णामं अणगारे पगइभदए जाव विणीए / से गं देवाणुप्पिएहि अन्भगुण्णाए समाणे गोयमाईए समणे णिगंथे
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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