SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णायाधम्मकहाओ अ. 1 1101 रोमकूवे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वं० 2 ता एवं वयासी-अज्जप्प. भिई णं भते ! मम दो अच्छीणि मोत्तूणं अवसेसे काए समणाणं णिग्गंथाणं णिसट्टे तिकट्ट पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वं० 2 ता एवं वयासी-इच्छामि गं भंते ! इयाणि दोच्चंपि सयमेव पव्वावियं सयमेव मुंडावियं जाव सयमेव आयारगोयरं जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खह / तए गं समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं सयमेव पवावेइ जाव जायामायावत्तियं धम्ममाइक्ख इ-एवं देवाणुप्पिया | गंतव्वं एवं चिट्ठियव्वं एवं णिसीयव्वं एवं _ तुयट्टियव्वं एवं भुंजियव्वं एवं भासियव्वं उट्ठाय 2 पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमियत्वं / तए णं से मेहे समणस्स भगवओ महावीरस्स अयमेयारूवं धम्मियं उवएसं सम्म पडिच्छइ 2 त्ता तह चिटुइ जाव संजमेणं संजमइ / तए णं से मेहे अणगारे जाए इरियासमिए अणगारवण्णओ भाणि. यव्यो। तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए तहा(एया) रूवाणं थेराणं सामाइयमाइयाणि एक्कारस अंगाई अहिज्जइ 2 ता बहुहिं चउत्थछट्ठमदसमदुवालसेहिं मासद्ध मासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ / तए गं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ जयराओ गुणसिलयाओ चेइ. याओ पडिणिक्खमइ 2 ता बहिया जणवयविहारं विहरइ // 34 // तए णं से मेहे अणगारे अण्णया कयाइ समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वं० 2 त्ता एवं वयासी-इच्छामि गं भंते ! तुहि अन्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए / अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह / तए णं से मेहे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं सम्म कारणं फासेइ पालेइ सोभेइ तीरेइ किट्टेइ सम्म काएणं फासेत्ता पालित्ता सोभत्ता तीरेता कित्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंस वं० 2 ता एवं वयासी-इच्छामि गं भंते ! तुर्भेहि अब्भणण्णाए समाणे दोमासियं भिक्खपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए / अहासुहं देवाणप्पिया! मा पडिबंध करेह / जहा पढमाए अभिलावो तहा दोच्चाए तच्चाए चउत्थाए पंचमाए छम्मासियाए सत्तमासियाए पढमसत्तराईदियाए दोच्चं सत्तराईदियाए तइयं सत्तराईदियाए अहोराइंदियाएवि एगराइंदियाएवि / तए
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy