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________________ पण्णवणासुत्तं प० 21 529 सरीरे ? गोयमा ! जलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउ. व्वियसरीरे वि, थलयरसंखेजवासाउयगब्भवकंतियतिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउ. व्वियसरीरे वि, खहयरसंखेजवासाउयगम्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउब्वियसरीरे वि / जइ जलयरसंखेजवासाउयगन्भवतियतिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउब्वियसरीरे किं पजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगम्भवकंतियतिरिवखजोणियपंचिदियवेउब्वियसरीरे, अपजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगभवतियतिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउब्वियसरीरे 1 गोयमा ! पजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउब्वियसरीरे, णो अपजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउव्वियसरीरे / जइ थलयरतिरिक्खजोणियपंचिं. दिय जाव सरीरे किं चउप्पय जाव सरीरे, परिसप्प जाव सरीरे? गोयमा! चउप्पय जाव सरीरे वि, परिसप्प जाव सरीरे वि। एवं सव्वेसिं णेयव्वं जाव खहयराणं पजत्ताणं, णो अपजत्ताणं। जह मणूसपंचिंदियवेउव्वियसरीरे किं संमुच्छिममणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे, गब्भवकंतियमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे ? गोयमा ! णो संमुच्छिममणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे, गन्भवतियमणूसपंचिंदियवेउव्वियसरीरे। जहगम्भवकंतियमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे किं कम्मभूमगगब्भवकंतियमणूसपंचि. दियवेउब्वियसरीरे, अकम्मभूमगगन्भवतियमणूमपंचिदियवेउब्वियसरीरे, अंतरदीवगगन्भवतियमणूसपचिंदियवेउब्वियसरीरे ? गोयमा! कम्मभूमगगब्भवकंतियमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे,णो अकम्मभूमंगगब्भवक्कतियमणूमपंचिदियवेउव्वियसरीरे, णो अंतरदीवगगम्भवकंतियमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे। जइ कम्मभूमगगब्भवकंतियमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे किं संखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचिंदियवेउव्वियसरीरे, असंखेजवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे ? गोयमा ! संखेजवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे, णो असंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवकंतियमणूसपंचिं. दियवेउब्वियसरीरे। जइ संखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवकंतियमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे किं पजत्तयसंखेजवासाउयकम्मभूमगमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे, अपजत्तय संखेजवांसाउय-कम्मभूमग गन्भवतिय-मणूस-पंचिदिय वेउव्वियसरीरे? गोयमा ! पजत्तयसंखेजवासाउयकम्मभूमगगम्भवकंतियमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे, णो अपजत्तयसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचिंदियवेउब्विय
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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