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________________ 524 अनंगपविद्वसुत्ताणि त्तगसुहुमपुढविकाइयएगिदियओरालियसरीरे य / बायरपुढविकाइया वि एवं चेव, एवं जाव वणस्सइकाइयएगिदियओरालियसरीरेत्ति / बेइंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पणत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-पजत्तगबेइंदियओरा. लियसरीरे य अपजत्तगबेइंदियओरालियसरीरे य। एवं तेइंदिया चउरिंदिया वि। पंचिंदियओरालि यसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरे य। तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! तिविहे पण्णत्ते / तंजहा-जलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य थलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य. खहयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य / जलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-समुच्छिमजलंयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य गम्भवक्कंतियजलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य / समुच्छिमजलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-पजत्तगसमुच्छिमतिरिक्खजोणियपंचिदियओरालियसरीरे य अपजत्तगसंमुच्छिमतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य, एवं गम्भवकंतिए वि। थलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य परिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य। चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-समुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य गम्भवकंतियचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदिय ओरालियसरीरे य / समुच्छिमचउप्पय०तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे० कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-पजत्तसंमुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य अपजत्तसंमुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य / एवं गम्भवक्कंतिए वि। परिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ! गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य भुयपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरे य / उरपरिसप्पथल
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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