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________________ . जीवाजीवाभिगमे स० प०५ 267 लपरियटें देसूण, एवं सुय० अंतरं० मणपजव०, केवलणाणिणो णत्थि अंतरं, अण्णाणि० साइयसपजवसियस्स जह० अंतो० उक्को० छावढेि सागरोवमाई साइरेगाई। अप्पा० सव्वत्थोवा मण. ओहि० असंखे० आमि. सुय० विसेसा० सट्टाणे दोवि तुल्ला केवल० अणंत. अण्णाणी अणंतगुणा // अहवा छविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहाएगिदिया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अजिंदिया / संचिट्ठणंतरा जहा हेट्ठा / अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा पंचेंदिया चउरिंदिया विसेसा० तेइंदिया विसेसा० बैंदिया विसेसा० अणिदिया अणंतगुणा एगिदिया अणंतगुणा // 263 // अहवा छविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा-ओरालियसरीरी वेउब्वियसरीरीआहारगसरी तेयगसरीरी कम्मगसरीरी असरीरी॥ ओरालियसरीरी गंभंते!०कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमऊणं, उक्कोसेणं असंखे कालं जाव अंगुलस्स असंखेजइभागं, वेउव्वियसरीरी जह० एकं समयं उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, आहारगसरीरी जह० अंतो० उक्को० अंतो०, तेयगसरीरी दुविहे प०,तं०-अणाइए वा अपजवसिए अणाइए वा सपजवसिए, एवं कम्मगसरीरीवि, असरीरी साइए अपजवसिए / अंतरं ओरालियसरीरस्स जह० एकं समयं उक्को० तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तममहियाई, वेउब्वियसरीरस्स जह• अंतो० उक्को० अणंतं कालं वणस्सइकालो, आहारगसरी रस्स जह० अंतो० उको० अणंतं कालं जाव अवड्दं पोग्गलपरियटै देसूणं, तेय० कम्मगसरीरस्स य दुण्हवि णत्थि अंतरं // अप्पाबहु० सव्वत्थोवा आहारगसरीरी वेउव्वियसरीरी असंखेजगुणा ओरालियसरीरी असंखेजगुणा असरीरी अणंतगुणा तेयाकम्मगसरीरी दोवि तुल्ला अणंतगुणा // सेत्तं छविहा सव्वजीवा पण्णत्ता // 264 // 0 // तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-सत्तविहा सव्वजीवा प० ते एवमाहंसु, तंजहा—पुट विकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया अकाइया। संचिट्ठणंतरा जहा हेट्ठा। अप्पाबहु० सव्वत्थोवा तसकाइया तेउकाइया असंखेजगुणा पुढविकाइया विसे० आउ. विसे० वाउ० विसेसा० सिद्धा अणंतगुणा वणस्सइकाइया अणंतगुणा // 265 // अहवा सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहाकण्हलेस्सा णीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा अलेस्सा // कण्हलेसे णं भंते ! कण्हलेसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! ज० अंतो० उक्को. तेत्तीस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, णीललेस्से णं० जह० अंतो० उक्को० दस
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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