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________________ 280 अनंगपविट्ठसुत्ताणि विसेसाहिया तेइंदिया विसेसाहिया बेइंदिया विसेसाहिया एगिदिया अणंतगुणा / एवं अपजत्तगाणं सव्वत्थोवा पंचेंदिया अपजत्तगा चउरिंदिया अपज्जत्तगा बिसेसाहिया तेइंदिया अपजत्तगा विसेसाहिया बेइंदिया अपजत्तगा विसेसाहिया एगिदिया अपजत्तगा अणंतगुणा सइंदिया अप० वि० // सव्वत्थोवा चउरिदिया पजत्तगा पंचेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया बेइंदियपज्जत्तगा विसेसाहिया तेइंदियपज्जत्तगा विसेसाहिया एगिंदियपज्जत्तगा अणंतगुणा सइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया // एएसि णं भंते ! सइंदियाणं पज्जत्तगअपज्जत्तगाणं कयरे 2 हितो० ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सइंदिया अपज्जत्तगा सइंदिया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा / एवं एगिदियावि // एएसि ण भंते ! बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं कयरे 2 हिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बेइंदिया पज्जत्तगा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, एवं तेंदियचउरिंदियपंचंदियावि // एएसि णं भंते ! एगिदियाणं बेइंदि० तेइंदि० चरिंदि० पंचेंदियाणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाण. य कयरे 2...? गोयमा ! सव्वत्थोवा चउरिदिया पज्जत्तगा पंचेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया पंचेंदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा चउरिदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया तेइंदियअपज्जत्ता विसेसाहिया बेइंदिया अपज्जत्ता विसेसाहिया एगिदियअपज्जत्ता अणंतगुणा सइंदिया अपज्जत्ता णिसेसाहिया एगिदियपज्जत्ता संखेज्जगुणा सईदियपज्जत्ता विसेसाहिया सइंदिया विसेसाहिया / सेत्तं पंचविहा संसारसमावण्णगा जीवा प० // 225 // चउत्था पंचविहा पडिवत्ती समत्ता / ___ पंचमा छव्विहा पडिवत्ती __ तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा प० ते एवमासु, तंजहा-पुढविकाइया आउक्काइया तेउ० वाउ० वणस्सइक्काइया तसकाइया // से किं तं पुढवि० 1 पुढवि० दुविहा पण्णत्ता, तं०-सुहुमपुढविक्काइया बायरपुढविकाइया, सुहुमपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य, एवं बायरपुढविकाइयावि, एवं चउक्कएणं भेएणं आउतेउवाउवणस्सकाइया णेयव्वा / से किं तं तसकाइया ? 2 दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य // 226 // पुढविकाइयस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जह
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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