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________________ 120 अनंगपतिमा अनंगपविट्ठसुत्ताणि सक्कारिस्संति संमाणिस्संति स०२ ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइस्संति 2 त्ता पडिविसजेहिंति // 79 // तए णं से दढपइण्णे दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिभयमेत्ते जोव्वणनगमणुप्पत्ते बावत्तरिकलापण्डिए अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए णवङ्गसुत्तपडिबोहए गीयरई गंधव्वणट्टकुसले सिङ्गारागारचारुवेसे संगयगयह सियभणियचिट्ठियविलाससंलावणिउणजुत्तोवयारकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी यावि भविस्सइ / तए णं तं ददपइण्णं दारगं अम्मापियरो उम्मुक्कवालभावं जाव वियालचारिंच वियाणित्ता विउलेहिं अण्णभोगेहि य पाणभोगेहि य लेणभोगेहि य वत्थभोगेहि य सयणभोगेहि य उवणिमंतेहिंति तए णं से दढपइण्णे दारए तेहिं विउलेहिं अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहिं णो सजिहिइ णो गिज्झिहिंइ णो मुच्छिहिइ को अज्झोववजिहिइ / से जहाणामए पउमुप्पले इ वा पउमे इ वा जाव सयसहस्संपत्ते इ वा पंके जाए जले संत्रुडढे णोवलिप्पइ पंकरएणं णोवलिया जलरएणं, एवामेव दढपइण्णे वि दारए कामेहिं जाए भोगेहिं संवढिए णोवलिप्पिहिइ कामरएणं णोवलिम्पिहिइ भोगरएण णोवलिप्पिहिइ मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणेणं से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुज्झिहिइ 2 त्ता मुण्डे भवित्ता अगाराओ अग्रगारियं पव्वइस्सइ / से गं अणगारे भविस्सइ, ईरियासमिए जाव सुहृययासणे इव तेयसा जलंते / तरस भगवओ अणुत्तरेणं णाणेणं एवं दंसणेणं चरित्तेणं आलएणं विहारेणं अजवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंतीए गुत्तीए मुत्तीए अणुत्तरेणं सव्वसंजमतवसुचरियफलगिव्याणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स अणते अणुत्तरे कसिणे पडिपुण्णे गिरावरणे शिव्वाघाए केवलवरणाणदंसणे समुप्पजिहिइ / तए णं से भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ. सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स परियायं जाणिहिइ / तं जहा-आगई गई ठिई चवणं उववायं तकं कडं मणोमाणसियं खइयं भुत्तं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्म-अरहा अरहस्सभागी, तं तं मणवयकायजोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सिइ / तए णं दढपइण्णे केवली एयारवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाई केवलिपरियायं पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोएत्ता बहूई भत्ताई पच्चक्खाइस्सइ २त्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेइस्सइ 2 त्ता जस्सहाए कीरइ णग्गभावे मुण्डभावे केसलोए बम्भचेरवासे अण्हाणगं अदंतवणं अणुवहाणगं भूमिसेजाओ फलहसेजाओ परघरपवेसो लद्धावलद्धाई माणावमाणाई परेसिं
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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