________________ परिशिष्ट-३ 269 संवत १९७६में खंभातमें श्रमणसंमेलन __ द्वारा देवद्रव्यसंबंधी किये गये निर्णय खंभातमें पूज्यपाद जैनाचार्य श्रीमद् विजय कमलसूरीश्वरजी महाराज, श्रीमान् सागरानंद सूरीश्वरजी महाराज, पंन्यासजी महाराज श्रीमद् दानविजयजी गणि और पंन्यासजी महाराज श्रीमान् मणिविजयजी गणि आदि महात्मा एकत्र होकर हरिभद्रसूरिकृत उपदेशपद, आवश्यकवृत्ति, षोडशक और संबोधप्रकरण, श्रीमद् जिनेश्वरसूरिकृत अष्टकवृत्ति, बृहत् कल्पव्यवहार और निशीथभाष्यादि शास्त्रों के आधार पर देवद्रव्यकी वृद्धि और रक्षण-भक्षणका फल और उनकी आयमें परिवर्तन न हो, ऐसा निर्देश देनेवाला यह निर्णय लिखा / पृ. 20 (यह निर्णय जैनपत्रमें ता. २१-३-२०के दिन प्रसिद्ध किया / ) निर्णयके मुद्दे : (1) शास्त्र (साक्षात्-अनन्तर और परंपरारूप) बिना किसी भी जीवकी सिद्धि ही नहीं / (2) जिनेश्वर देवके स्थापना-निक्षेपाको माननेवालेको जिनचैत्यकी उसकी पूजाकी, उसके लिए आवश्यक उपकरणोंकी और उनमें कमी न आने पाये उसके लिए देवद्रव्यकी वृद्धि और उसके संरक्षणकी अनिवार्य आश्यकता है / . (3) शास्त्रोक्त रीतिसे देवद्रव्यके सूद आदि द्वारा वृद्धि और रक्षा करना, यह श्रावकोंके लिए महत्त्वके कार्यों में से एक है / अरे, संसारसे पार उतरनेका वह एक मार्ग भी है / (4) जैनोंसे भी न हों, ऐसे पापकार्योमें देवद्रव्यका व्यय नहीं होता / (5) पाँच सात मुख्य स्थानके अलावा अन्य स्थलोंमें देवद्रव्य और साधारण द्रव्य, दोनोंकी एक समान आवश्यकता है / (6) देवद्रव्यकी जो जो आमदनी मकानके किराये द्वारा, व्याज द्वारा, पूजा-आरती-मंगलदीप आदिके चढ़ावोंके द्वारा होती हो, उन तमाम मार्गोको बंद करनेका परिणाम, शास्त्रकारोंने संसार परिभ्रमण बताया है / (7) मालोद्घाटन, परिधापनिका मोचन और न्युछनकरण आदिमें चढ़ानेसे कार्य करनेकी रीति सैंकडों वर्ष पहलेसे चली आती हुई शास्त्रोंमें