________________ परिशिष्ट-३ 253 पू. पं. कनकविजयजी आदि म. सा. का पूज्यपाद प्रेमसूरिजी म. सा. परका पत्रक्रमांक - 1 कृष्ण - 4, नरशीकेशवजीकी धर्मशाला, पालीताणा. पूज्यपाद, परमकारुणिक, परमाराध्यपाद, परम करुणासागर, परम गुरुदेव आचार्यदेवश्रीकी पुनीतसेवामें, ले. पादरेणु कृपाकांक्षी सेवक कनक, सुबुद्धि, महिमा आदिकी कोटिशः वंदनाश्रेणि स्वीकारनेका अनुग्रह करें / ___ आपश्रीका कृपापत्र प्राप्त हुआ। आपश्री द्वारा रवाना किया हुआ देवद्रव्यसंबंधी पाठवाला रजि. पत्र प्राप्त हुआ / सबकुछ पूरी लगनसे देखापढ़ा / इन सारे उल्लेखोंसे स्पष्ट होता है कि महोत्सवादि क्रिया भी जब देवद्रव्यसे करनेमें शास्त्रसंगति है तो पूजा आदिके लिए तो कहना ही क्या होगा ? - इन सारे उल्लेखोंके पाठोंवाली तमाम नोंध सविस्तृत तैयार करना आवश्यक हैं / अन्यथा इसमें हेतुपूर्वक अज्ञान श्रावकोंको व्यूदग्राहित किये गये हैं और व्यवस्थित ढंगसे गलत प्रचार किया जा रहा है / : सत्य और शास्त्रीय बात क्या है ? उसमें समझनेके लिए बिल्कुल तैयारी नहीं और व्यर्थका ऊहापोह किया जा रहा है / इसमें साधु लोग भी कई जगह शामिल हुए हैं / - कृपादृष्टिमें वृद्धि करें /