________________ 250 धार्मिक-वहीवट विचार पू. पंन्यासजी भद्रंकरविजयजी म. सा. का पूज्यपाद प्रेमसूरिजी म. सा. परका पत्रक्रमांक - 3 कार्तिक कृष्ण - 13, सूरत परमाराध्यपाद परमकृपालु परम गुरुदेवश्रीके चरणारवंदमें कोटिशः वंदनावलि सह निवेदन है कि, कृष्ण 12 का कृपापत्र मिला / आलोयणकी चिट्ठियाँ प्राप्त हुई / इसके साथ बाकी रही भेजी हैं / ___'चेईय वंदण महाभाष्य'की गाथा 203 देखी है / उपरकी 4 गाथाओंके साथ उसका संबंध है / उसमें वस्त्र, अलंकार, विलेपन, सुगंधि पुष्प, धूप, पुष्प, पंचामृत आदि वस्तुओंका अंगपूजामें समावेश किया है / उन सभीके लिए क्षमता न हो तो उसका भाव रखनेका बताया है / गाथा २०६में लिखा है कि, _ 'सावजणस्स नियमा उचियं सामग्गीसब्भावे / ' सामग्रीके सद्भावमें श्रावकजनके लिए ये दोनों पूजाएँ उचित है, साधुजनको नहीं / इसमें किसी जगह 'स्वद्रव्यसे' ऐसा शब्द नहीं, लेकिन स्वशक्ति और सामर्थ्य (क्षमता) शब्द है / वह सामर्थ्य द्रव्यका भी माना जाय और दूसरी सुविधाओंका भी माना जाय / पूरी सामग्री न हो तो, थोडी सामग्री द्वारा स्वशक्ति अनुसार करे, ऐसा अर्थ किया जाय तो संगति हो सकती है / उसकी टिका नहीं है / अतः इस प्रकारके पाठ, दूसरी जगह जहाँ हो, वहाँ देखना चाहिए / सेवक भद्रंकरके वंदन /