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________________ 230 धार्मिक-वहीवट विचार पूज्यपाद आ. भ. प्रेमसूरिजी म. सा.का पू. आ. जंबुसूरि उपरका पत्रक्रमांक - 2 बम्बई, लाल बाग, मा. शु. 7 प. पू. आचार्यदेवकी ओरसे अहमदाबाद मध्ये विनयादिगुणोपेत आ. : श्री. विजय जंबुसूरिजी आदि योग अनुवंदना-सुखशाता-आजरोज़ पत्र प्राप्त हुआ / पढ़कर समाचार विदित हुए / आप लिखते हैं कि देवद्रव्यमेंसे पूजा हो वह शास्त्रसंमत है, फिर भी उसका उपयोग कारणिक अर्थात् अपवादिक संयोगोंमें करना चाहिए, इत्यादि जो आपने लिखा है उसके बारेमें लिखनेका है कि उपदेश पदसे लेकर यावत् द्रव्य सप्ततिका पर्यन्तके जो जो पाठ मेरी नजरमें आये हैं, उनमें किसी भी जगह कारणिक या अपवादिक संयोगोमें उपयोग हो, ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ / आपको दृष्टिगोचर किसी ग्रंथमें हुआ तो सूचित करें / . ज. हेमंतविजयजीकी वंदना.
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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