________________ 136 धार्मिक-वहीवट विचार - ये लोग कितने भयंकर पापभागी होते होंगे ? उन्हें इस बातसे कौन अवगत कराये ? प्रश्न : (135) उछामनीकी रकम कमसे कम कितनी समयमर्यादामें जमा करा दें, तो व्याज भरनेमेंसे मुक्ति मिल सके ? उत्तर : श्री संघने जो समयमर्यादा योग्य ढंगसे (विलंबसे नहीं) निश्चित की हो, उस समयमर्यादामें रकम जमा हो जाय तो. उसका व्याज भरना न होगा / कई संघ भाद्रपद शुक्ल पंचमीकी या कई दीपावलीकी या कार्तिक शुक्ल पूर्णिमाकी अवधि निश्चित्त करते हैं / सारे वर्षमें जो रकम उछामनी या भेंट रूपमें देनेकी निश्चित की हो उसे उस अवधिमें जमा करा देनेसे व्याजमुक्तिका लाभ प्राप्त होता है / वास्तवमें तो अवधिकी बिना प्रतीक्षा किये तुरंत ही उसी दिन रकम जमा करा देना, यही उचित है / थोडे दिनोंके लिए संघ व्याजको क्यों गँवाये ? प्रश्न : (136) पांजरापोल संस्थाका मुख्य उद्देश्य कौन-सा .. उत्तर : दूध आदि पदार्थ देनेसे उपयोगी समझे जानेवाले या ऐसे पदार्थ न देनेसे उपयुक्त न समझे जानेवाले. पशुमात्रकी हर प्रकारकी पूरी देखभाल करना, यह इस संस्थाका मुख्य उद्देश है / / पुराने जमानेमें (आज भी कहीं कहीं) महाजनोंके व्यापारमें इस विषयका लागा बना रहता, जिसकी आमदनीमेंसे आरामसे पांजरापोलें चलती रहती / जीवनभर जिसने सख्त महेनत की-काम दिये-ऐसे जानवरोंको कसाईको बेचनेकी बात कोई स्वप्नमें भी सोच नहीं सकता / बूढे, बिन उत्पादक या बीमार जानवरोंको अन्तिम साँस तक पोसनेकी ताकत जिसमें न हो, वह किसान उस जानवरको पांजरापोलमें दर्ज करा देता / अपनी शक्ति अनुसार रकम भी जमा करा देता / सगे पुत्रसे अलग होते समय जैसी वेदना मातापिताको हो वैसी हालत धरतीतात किसानकी होती / कई बार तो वह फूट फूटकर रोने लगता / ऐसे दयालु किसानो के जानवरोंके लिए पांजरापोल संस्था थी / अब तो सरकार भी कसाई बन पायी है /