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________________ 128 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : चतुर्दशमो विमागा छराह पएसो तं न भवइ, कम्हा?, जम्हा जों देसपएसो सो तस्सेव दव्वस्स, जहा को दिटुंतो ?, दासेण मे खरो कीबो दासोऽविमे खरोऽधि मे, तंमा भणाहिछराह पएसो, भणाहि पंचगह पएसो, तंजहा-धम्मपएसो अधम्मपएसो आगासपएसो जीवपएसो खंधपएसो, एवं अयंत संगह ववहारो भणइ-जं भणसि-पंचराहं पएसो, तं न भवइ, कम्हा ?, जइ जहा पंचराहं गोट्ठिाणं पुरिसाणं केइ दबजाए सामराणे भवइ, तंजहा-हिरगणे वा सुवरणे वा धणे वा धराणे वा, तं.न ते जुत्तं वत्तुं जहा पंचराह पएसो, तं मा भणिहिपंचराहं पएसो, भणाहि-पंचविहो पएसो, तजहा-धम्मपएसो अधम्मपएसो श्रागासपएसो जीवपएसो खंधपएसो, श्वं वयंतं चवहारं उज्जुसुयो भणइजं भणसि-पंचविहो पएसो, तं न भवइ, कम्हा, जइ ते पंचविहो पएसो एवं ते एक्केको पएसो पंचविहो एवं ते पणवीसतिविहो पएसो भवइ, तं मा भणाहि-पंचविहो पएसो, भणाहि-भइयब्बो पएसो-सि धम्मपएसो सित्र अधम्मपएसो सिन आगासपएसो सित्र जीवपएसोसिश्र खंधपएसो, एवं वयंत उज्जुसुयं संपइ सद्दनो भणइ-जं भणसि भइयबो पएसो, तं न भणइ, कम्हा ?, जइभइअव्वो पएसो एवं ते धम्मपएसोऽवि सिथ धम्मपएसो सिग्र अधम्मपएसो सित्र श्रागासपएसो सित्र जीवपएसों सिथ खंधपएसो, अधम्मपएसोऽवि सिप धम्मपएसो जाव खंधपएसो, जीवपएसोवि सित्र धम्मपएसो जाव सिय खंधपएसो, खंधपएसोऽवि सिथ धम्मपएसो जाव सित्र खंधपएसो, एवं ते अणवस्था भविस्सइ, तं मा भणाहि-भइयव्वो पएसो, भणाहि-धम्मे पएसे से पएसे धम्मे, अहम्मे पएसे से पएसे अहम्मे, यागासे पएसे से पएसे अागासे, जीवे पएसे से पऐसे नोजीवे, खंधे पएसे से पएसे नोखंधे, एवं वयंत सद्दनयं समभिरूटो भणइ-जं भणसि-धम्मे परसे से पएसे धम्मे जाव जीवे पएसे से पएसे नोजीवे खंधे पएसे से पएसे नोखंधे, तं न भवइ, कम्हा ?, इत्थं खलु दो समासा भवंति, तंजह-तत्पुरिसे श्र
SR No.004375
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nandisutra, & agam_anuyogdwar
File Size17 MB
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