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________________ श्रीमदनुयोगद्वार-सूत्रम् ] [ 113 किंचिप्पोत्रणं, केवलं पराणवणा पराणविजइ, से तं ववहारिए 4 / से किं तं सुहुमे खेत्तपलिश्रोवमे?, 2 से जहाणामए पल्ले सिधा जोत्रणं पायामविक्खंभेणं, जाव परिक्खेवेर्णा, से गो पल्ले एगाहित्रबेश्राहिय-तेत्राहि जाव भरिए वालग्गकोडी तत्थ गां एगमेगे वालग्गे असंखिजाई खंडाई कजइ, ते गां वालग्गा दिट्ठियोगाहणायो असंखेजइभागमेत्तासुहुमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाश्रो असंखेजगुणा, ते गां वालग्गा णो अग्गी डहेजा जाव णो पूइत्ताइ हव्वमागच्छेजा, जे गां तस्स पल्लस्स अागासपएसा तेहिं वालग्गेहिं अप्फुना वा अणाफुराणा वा तो गां समए 2 एगमेगं अागासपएसं अवहाय जावइएगां कालेगां से पल्ले खीणे जाव णिट्ठिए भवइ, से तं सुहुमे खेत्तपलि ग्रोवमे 5 / तत्थ गां चोथए पराणवगं एवं वयासीअत्थि णं तस्स पल्लस्स अागासपएसा जे गां तेहिं वालग्गेहिं अणाफुराणा ?, हंता अत्थि, जहा को दिट्ठतो ?, से जहाणामए कोट्ठए सिश्रा कोहंडागां भरिए तत्थ गां माउलिंगा पक्खित्ता तेवि माया, तत्थ णं बिल्ला पक्खित्ता तेवि माया, तत्थ गां श्रामलगा पक्खित्ता तेवि माया, तत्थ णं बयरा पक्खित्ता तेवि माया, तत्थ गांचणगा पक्खित्ता तेऽवि माया, तत्थ गां मुग्गा पक्खित्ता, तत्थ ग सरिसवा पक्खित्ता, तत्थ णं गंगावालुथा पक्खित्ता सावि माया, एवमेव एएगां दिट्ठतेणां अस्थि गां तस्स पलस्स अागासपएसा जे गां तेहिं वालग्गेहिं अणाफुराणा 6 / एएसिं पल्लागां कोडाकोडी भवेज दसगुणिया। तं सुहुमस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणां // 114 // एएहि सुहुमेहिं खेत्तपलिश्रोवम-सागरोवमेहिं किं पयोगां ?, एएहिं सुहुमपलिश्रोवम-सागरोवमेहि दिट्ठिवाए दवा मविज्जंति 7 // सू० 140 // ___ कइविहा गां भंते ! दव्या पराणत्ता ? गोयमा / दुविहा पराणत्ता, तंजहा-जीवदव्वा य अजीवदव्वा य 1 / अजीवदव्वा गां भंते ! कइविहा
SR No.004375
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nandisutra, & agam_anuyogdwar
File Size17 MB
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