________________ श्रीमदावश्यकसूत्रम् :: अध्ययनं 1 ] भासइ थरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं (गणधरा निपुणा, निगुणा) सासणस्स हियट्ठाए, तो सुत्तं तित्थं पवत्तइ // 12 // सामाइयमाईयं सुयनाणं जाव बिंदुसाराश्रो / तस्सवि सारो चरणं, सारो चरणस्स निव्वाणं // 13 // सुयनाणंमि वि जीवो, वट्टतो सो न पाउणइ मोक्खं / जो तवसंजममइए जोए न चएइ वोटु जे // 14 // जह छेयलद्धनिजामश्रोऽवि, वाणियगइच्छियं भूमि / वारण विणा पोश्रो, न चएइ महराणवं तरिउं // 15 // तह नाणलद्धनिजामश्रोऽवि, सिद्धिवसहिं न पाउगइ। निउणोवि जीवपोयो, तवसंजममारुअविहूणो // 16 // संसारसागरायो, उन्धुड्डो मा पुणो निबुड्डिजा। चरणगुणविप्पहीणो, बुड्डइ सुबहुँपि जाणंतो // 17 // सुबहुँपि सुयमहीयं, किं काही ? चरणविप्पहीण(मुक्क)स्स / अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्सकोडीवि // 18 // अप्पंपि सुयमहीयं, पयासयं होइ चरणजुत्तस्स / इक्कोऽवि जह पईवो, सचक्खुपस्सा पयासेइ // 11 // जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी न हु चंदणस्स / एवं खु नाणी चरण हीणो, नाणस्स भागी न हु सोग्गईए // 10 // हयं नाणं कियाहीणं, हया अन्नाणो किया। पासंतो पंगुलो दह्रो धावमाणो अ अंधयो // 101 // संजोगसिद्धीइ फलं वयंति, नहु एगचक्केण रहो पयाइ। अंधो य पंगू य वणे समिचा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा // 102 // नाणं पयासगं सोहश्रो तवो संजमो य गुत्तिकरो। तिराहंपि समाजोगे, मोक्खो जिणसासणे भणियो॥ 103 // भावे खोवसमिए, दुवालसंगपि होइ सुयनाणं / केवलियनाणलंभो, ननत्थ खए कसायाणं // 104 // अट्टराहं पयडीणं, उक्कोसठिइइ वट्टमाणो उ / जीयो न लहइ सामाइयं चउराहंपि एगयरं // 105 // सत्तरहं पयडीणं अभितरो उ कोडिकोडीणं / काउण सागराणं, जइ लहइ चउराहमराणयरं // 106 // पल्लय' गिरिसरिउवला' पिवीलिया पुरिस पह जरग्गहिया' / कुदव जल वत्थाणिय सामा