________________ श्रीमती ओनियुक्तिः ] [16 कुणइ जाव सव्वे पडिनियत्ता // 551 // कालपुरिसे व श्रासज मत्तए पक्खिवित्तु तो पढमा / अहवावि पडिग्गहगं मुयंति गच्छं समासज्ज // 560 // चित्तं बालाईणं गहाय आपुच्छिऊण श्रायरिश्रं / जमलजणणीसरिच्छो निवेसई मंडलीथेरो // 561 // जइ लुद्धो राइणिश्रो होइ अलुद्धोवि जोऽवि गीयत्थों ! श्रोमोवि हु गीयस्थो मंडलिराइणि अलुद्धो उ // 562 // गणदिसि पगासणया भायण पक्खेवणा य भाव गुरू / सो चेव य आलोगो. नाणत्तं तद्दिसाठाणे // 563 // ___(भा०) निक्खमपवेस मोत्तु पढमसमुहिस्सगाण ठायति / समाए परिहाणी भावासन्नेवमाईया // 281 // पुष्वमुहो राइणिओ एको य गुरुस्स अभिमुहो ठाइ / गिण्हह व पणामेइ व अभिमुहो इहरहाऽवन्ना // 282 // .: जो पुण हवेज खमत्रों अतिउच्चायो व सो बहिं गइ / पढमसमुद्दिट्टो वा सागारियरक्खणट्ठाए // 564 // एक्केकस्स य पासंमि मल्लयं तत्थ खेलमुग्गाले। कट्टट्ठिए व डुब्भइ मा लेवकडा भवे वसही // 565 // मंडलिभारणभोयण गहणं सोही य कारणुव्वरिते। भोयणविही उ एसो भणियो तेल्लुक्कदंसीहिं // 566 // __ (भा०) मंडलि अहराइणिआ सामायारी य एस जामणिआ। पुत्वं तु अहाकडगा मुच्चति तओ कमेणियरे // 283 // निडमहराणि पुव्वं पित्ताई. पसमणहया भुजे / बुद्धिबलवड्णट्ठा दुक्खं खुविकिंचिनिद्धं // 284 // अह होज निडमहुराणि अप्पपरिकम्म-सपरिकम्महिं / भोत्तण निडमहुरे फुसिअ करे मुंच - हागडए // 285 // कुक्कुडिअंडगमित्तं अहवो खुड्डागलंबणासिस्त / लंबणतुल्ले गिण्हइ अविगियवयणो य राइणिओ // 286 // गहणे परखेवंमि अ सामायारी पुणो भवे दुविहा / गहणे पायंमि भवे वयणे पावेवणा होइ // 287 // कडपयरच्छएणं भोत्तव्वं अहव सोहखइएणं / एगेहि अणेगेहिवि वज्जेत्ता घूमइंगोलं // 288 // असुरसुरं अश्वचवं अदुयमविलंबिअं अपरिसाडिं। मणवयणकायगुत्तो भुजह अह पक्खिवणसोहिं // 289 // ..