________________ 1.8] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। द्वादशमो विमागा गेलनकज तुरियो अणभोगेणं च लित्त अग्गहणं / श्रणभोग गिलाणट्ठा उस्तग्गादीणि नवि कुजा // 427 // जस्स य जोगमकाऊण निग्गमो न लभई तु सचित्तं / न य वत्थपायमाई तेरणं गहणे कुणसु तम्हा // 428 / सो श्रापुच्छि अणुनायो सग्गामे हिंड अब परगामे / सग्गामे सइ काले पत्ते परगामे वोच्छामि // 42 // पुरतो जुगमायाए गंतूणं अन्नगामबाहिठियो। तरुणे मज्झिमधेरे नव पुच्छायो जहा हेट्ठा // 430 // पायपमजणपडिलेहणा उ भाणदुग देसकालंमि / अप्पत्तेऽविय पाए पमज पत्ते य पायदुगं॥ 431 // समणं समणिं सावग साविय गिहि अन्नतिथि बहि पुच्छे / अस्थिह समण सुविहिया सि? तेसालयं / गच्छे // 432 // समणुराणेसु पवेसो बाहिं उविऊण अन्न किकम्मं / खग्गूडे सन्नेसु ठवणा उच्छोभवंदणयं // 433 // गेलनाइ अवाहा पुच्छिय सयकारणं च दीवेत्ता / जयणाए ठवणकुले पुच्छइ दोसा अजयणाइ // 434 // दाणे अभिगमसड्ढे संमत्ते खलु तहेव मिच्छत्ते / मामाए यचियत्ते कुलाइं जयणाइ दायंति // 435 // सागारि वणिम सुणए गोणे पुन्ने दुगुछियकुलाइं / हिंसागं मामागं सवपयत्तेण वज्जेजा // 436 // बाहाए अंगुलीय व लट्ठीइ व उज्जुयो ठियो संतो। न पुच्छेज न दाएजा पचावाया भवे दोमा // 437 // अगणीण व तेणेहि व जीवियववरोवणं तु पडिणीए / खरयो खरिया सुराहा णडे वट्टक्खुरे संका // 438 // पडिकुट्टकुलाणं पुण पंचविहा थूभिया अभिन्नाणं / भग्गघरगोपुराई रुक्खा नाणाविहा चेव // 431 // ठपणा मिलक्खुनेड्ड अचियत्तघरं तहेव पडिकुटुं। एयं गणधरमेरं अइकमंतो विराहेजा // 440 // छक्कायदयावंतोऽवि संजयो दुल्लहं कुणइ बोहिं / श्राहारे नीहारे दुगुलिए पिंडगहणे ये // 441 // जे जहिं दुगुछिया खलु पब्बावणवसहिभत्तपाणेसु / जिणवयणे पडिकुट्ठा वज्जेयव्वा पयत्तेणं // 442 // अट्ठारस