________________ गोमती औषनियुक्तिः ] [ 160 होइ अहिंगरणं / पउरदवकरण दट्ठ कुसील सेहराणहाभावो / / 303 / / जत्थऽम्हे वचःमो जत्थ य थायरइ नाइवग्गो णे / परिभा कामेमाणा संस्यगदिन्नया वावि // 304 // दव अप्प कलुस असई अवगण पडिसेह विपरीणामो / मंकाईया दोसा पंडिस्थिगहे य जं चऽराणं // 305 // श्राहणणाई दित्ते गरहिअतिरिएसु संकमाईया। एमेव य संनोए तिरिए वज्जेत्तु मणुयाणं // 306 // कलुसदवे असई य व पुरिसालोए हवंति दोसा उ / पंडित्थीसुवि एए खद्धे वेउन्धि मुच्छा य॥ 307 // यावायदोस तइए बिइए संलोययो भवे दोसा / ते दोवि नस्थि पढमे तहिं गमणं तस्थिमा मेरा // 308 // कालमकाले सराणा कालो तइयाइ सेसयमकालो / पढमा पोरिसि श्रापुच्छ पाणगमपुफियऽगणदिति // 301 // अरेगगहण उग्गाहिएण पालो पुच्छिउं गच्छे / एसा उ अकालंमी श्रग हिंडिय हिंडिया कालो // 31 // कप्पेऊणं पाए एक्केकस्स उ दुवे पडिग्गहए। दाउं दो दो गच्छे तिराहट्ट दवं तु घेत्तूणं // 311 // अजुगलिया अतुरंता विकहारहिया वयंति पढमं तु / निसिइत्तु डगलगहणं श्रावडणं वचमा मज // 312 / अणावायमसंलोए, परस्सणुवबाइए / समे अझसिरे यापि, अचिरकालकयंमि श्र / 313 // वित्थिाणे दूरमोगाढे, नासराणे विलवजिए। तसपाणबीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे // 314 // एगदुगतिगवउक्ग-पंचछसत्तट्ठनागदसगेहिं / संजोगा कायबा भंमसहस्सं चटनीसं // 315 // (उभयमुहं गसिद्गं हेट्ठिलाणंतरेण भय पढमं / लद्धहगसिविभत्ते तस्सुवरिगुणं तु संजोगा // 25 // प्र०) . (भा०)आयापवयणसंजम-तिविहमुग्घाइमंतु नायवं / औरोमंपच अगणी पिट्टण अमुई ये अन्नत्य // 178 // विसमं पलोहण आया इयरस्स पलोहणंमि छकाया / झुसिमि विच्छगाई उभयकमणे तसाईया // 179 // जे जमि उउमि य कया पयावणाईहि थंडिला ते उ। हलियरंमि चिरकया वासा