________________ कल्पसूत्र // 42 // सुजाय-सव्वंग-सुंदरंगं, ससिसोमाकारं, कंतं, पियदंसणं, सुरूवं, दारयं / पयाहिसि ॥सू. 78 // से वि य णं दारए उम्मुक्क-बालभावे विण्णायपरिणयमित्ते जोव्वणग-मणुप्पत्ते सूरे वीरे विकंते विच्छिन्न-विपुल* बलवाहणे चाउरंत-चक्कवट्टी रज्जवई राया भविस्सइ, जिणे वा। - तेलुक्क-(तिलोग)-नायगे धम्मवर-चाउरंत-चक्कवट्टी ॥सू. 79 // तं उराला णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिट्ठा, / जाव आरुग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-कल्लाण-मंगल-कारगाणं देवाणुप्पिया ! // 42 //