________________ ल्पसूत्र उवागच्छित्ता सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे निसीअइ ॥सू.६३॥ // 3 // सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे निसीइत्ता अप्पणो उत्तर-पुरस्थि (च्छि)मे दिसीभाए अट्ठ भद्दासमाई सेयवत्थ-पच्चुत्थयाइं सिद्धत्थय-कय-मंगलोवयाराई रयावेइ, रयावित्ता अप्पणो अदूरसामंते / नाणा-मणिरयण-मंडियं, अहिअ-पिच्छणिज्ज, महग्य-वर-पट्टणुग्गय, सह-पट्ट-भत्ति-सय-चित्तताणं, ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहगवालग-किंनर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं / // 37 //