________________ कल्पसूत्र // 15 // ग्गामे नयरे नायाणं खत्तिआणं सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कासवगुत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तिआणीए वासिट्ठसगुत्ताए कुच्छिसि / गम्भत्ताए साहराहि / जे वि अ णं से तिलसाए खत्तिआणीए गम्भे / तं पि अ णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि / / गभत्ताए साहराहि, साहरित्ता मम एअमाणत्ति खिप्पामेव / पञ्चप्पिणाहि ॥सू.२५॥ तए णं से हरिणेगमेसी पायत्ताणिआहिवई देवे सक्केणं देविदेणं /