________________ कल्पसूत्र // 198 // गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा / मूळ // सू. 31 // (ग्रं. 1100) वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गं-वस श्रीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडिआए अणुप्पविट्ठस्स निगिझिय निगिज्झिय बुट्टिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे आरामसि / / वा, अहे उवस्सयंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए // सू. 32 // तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते / चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिगा // 118 //