________________ कल्पसूत्र मूळ // 10 // गणिं गुणोववेयं 38 // 13 // सुत्तत्थ-रयण-भरिए, खम-दम-मद्दवगुणेहिं संपन्ने। 'देविड्डि-खमासमणे, कासवगुत्ते पणिवयामि 39 // 14 // // इति स्थविरावली नामकं द्वतीयं वाच्यम् // 2 // ॥अथ सामाचारी॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवी। सइराए मासे विइकते वासावासं पज्जोसवेइ // सू. 1 // से केणटेणं / 109 //