________________ कल्पसूत्र // 108 // सामि // 4 // तं वंदिऊण सिरसा, थिरसत्त-चरित्त-नाणसंपन्नं / थेरं च। | 'संघवालिय' गोयमगुत्तं पणिवयामि 29 // 5 // वंदामि 'अज्जहत्यि' / / च, कासवं खंतिसागरं धीरं। गिम्हाण पढममासे, कालगयं चेव सुद्धस्स 30 // 6 // वंदामि 'अज्जधम्म' च, सुव्वयं सील-लद्धिसंपन्नं / / | जस्स निक्खमणे देवो, छत्तं वरमुत्तमं वहइ 31 // 7 // 'हत्थिं' (हत्थं) * कासवगुत्तं, धम्मं सिवसाहगं पणिवयामि / 'सीहं' कासवगुत्तं, 32 'धम्म' पि य कासवं 33 वंदे // 8 // तं वंदिऊण सिरसा, थिरसत्त-| neen