________________ कल्पसूत्र // 78 // ॥सू.१७२॥ जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे सावणसुद्धे, तस्स णं सावणसुद्धस्स छट्ठीपक्खे णं पुव्वण्ह-कालसमयंसि उत्तरकुराए सीयाए सदेवमणुआसुराए परिसाए अणुगम्ममाण-मग्गे जाव बारवईए नयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव रेवयए। उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोग-वरपायवस्स अहे / सीयं ठावेइ, ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ पचोरुहित्ता सयमेव आभरण-मल्लालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं SCII