________________ कल्पसूत्र मूळ // 7 // <9849484984984181818189<<<<<49 तस्स णं कत्तियबहुलस्स बारसीपक्खे णं अपराजिआओ महाविमाणाओ बत्तीसं सागरोवम-ट्ठिइयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जबुहीवे दीवे भारहे वासे सोरियपुरे नयरे समुहविजयस्स रण्णो भारि / आए सिवाए देवीए पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि जाव चित्ताहिं / / जाव गब्भताए वक्ते, सव्वं तहे(मे)व सुमिणदंसण-दविण-संहरणाइअं| इत्थ भाणियव्वं // सू. 170 // तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी जे से वासाणं // 77 //