________________ कल्पसूत्र // 7 // निव्वुडे, सव्वदुक्खप्पहीणे॥सू.१४६॥ समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स नव वाससयाइं विइक्ताई, दसमस्स य / वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ, वायणंतरे पुण अयं तेणउए संवच्छरे काले गच्छइ, इति दीसइ // सू. 147 // 24 // // इति श्री महावीरजिनेन्द्रचरित्रम् // तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे णं अरहा पुरिसादाणीए पंच विसाहे होत्था, तंजहा-विसाहाहिं चुए चइत्ता गम्भं वक्ते, विसाहाहिं ||7||