________________ // 5 // कल्पसूत्र समणे भगवं महावीरे संवच्छरं साहियं मासं जाव चीवरधारी मूळ स्था / तेण परं अचेलए पाणिपडिग्गहिए, समणे भगवं महावीरे सारैगाई दुवालसवासाइं निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ / उवचग्गा उप्पज्जति, तं जहा-दिव्वा वा, माणुसा वा, तिरिक्खजोणिया / Hal!अणुलोमा वा, पडिलोमा वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहइ, खमइ, मिशिखइ, अहियासइ ॥सू. 116 // तए णं समणे भगवं महावीरे आणगारे जाए, इरियासमिए, भासासमिए, एसणासमिए, आयाण // 19 //