________________ कल्पसूत्र मळ // 47 // समणे भगवं महावीरे गब्भत्थे चेव इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ, “नो खलु मे कप्पइ अम्मापिऊहिं जीवन्तेहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए” ॥सू. 94 // तएणं सा तिसला खत्ति- 4 याणी व्हाया कय-बलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता जाव / सव्वालंकार-विभूसिया तं गम्भं नाइसीएहिं, नाइउण्हेहिं, नाइतित्तेहिं, नाइकडुएहिं, नाइकसाएहिं, नाइअंबिलेहिं, नाइमहुरेहिं, नाइनिद्धेहिं, नाइलुक्खेहिं, नाइउल्लेहिं, नाइसुक्केहि, सव्वत्तुग-भयमाणसुहेहिं, I47 //