________________ 'श्री बृहत्कल्पसूत्रं : उद्देशकः६] 63] माणे तयाणपत्ते मिया 99 / / .2 // निगांधस्साय अहे पायंसि स्याए वा कंटए वाही व मकरवा परियावज्जेज्जा न च निगांधे जो मंचा / एज्जा जीरित्तए वा चिसोहेत्तए वा तं निगगंधी नीहरमाणी चा विसाहेमाशी वा नारकामइ "सू. : नि धस य मच्छिसि पाणे वा धीर वा नए या परियावज्जेज - चनिनो संचाएज्जा नीहरितए वा विमो? - त्तए वा त नि नहरमाण वा विमोहेमाणी वा नाइकरामह।.।। निगाह भर पायंमि खाए या करए वा हावा सकारे यावलज्जा तच निमां को समाज नहिरिनए वा चिसो नए वा, तं च निगांधे नीहरमाणे वा विमोरेमाणे ब। जाइकमइ / / 5 / / निगाँधीए य अच्छिसि पाणे वा श्रीए वा एला प्रोटावजात / च निगांधी जो संचाएइ नीहरि नए निमोहेजाः वा चनिमांचे सीहरमाणे वा वियोहेमाणे वा जामः 7 . नि . निग्गन्धी दुग्गांसि वा विसमं सिवा पव्वर सिवा पकघलनागि बा पवरमाणिं वा गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा जाइकमइ / ॥स. 1 // निगांधे निगाधि सेयंमिचा पंक्रमि चा पणमि वा उदयसि वा ओकसमाधि वा भोवुन्झमाणिवा गेरमाणे / वा अवलम्बमाणे वा नाइकामह।।सू. निगांधे जिगांधिं नावं आभमाणेि वा ओकभमाणिं या गोण्हमाणे वा अवलम्डमाणे वा नामद १३१॥सू.१॥ चिचिन्न नि निगांधे किण्डमाणे : वा अवलम्बमाणे वा नातिकमति मू.१०॥ टिचिन जिगान्धि / निगान्धे शोहमाणे वा अवलम्त्रमाणे वा नाइकमा 193011 // जंक्यार ।मू.१२॥ उम्मायापासू.१३ / / चमगा। न.१४।। साहि गरण ॥सू.१५।। सपायच्छिन्न ।।सू.१६ / अन्तमाणपरियाइ चिखय / / सू.१७॥ अजाय निग िनिगांधे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा लाइक्कमइ २४४।।सू.१८॥ उ कप्परस पलिमधू(पी) पन्जन्ता तं जहा- कोक्काए मंजसम्म पलिमंधू,मोहरिए सच्चचयणस्स पलि मंपू,तिन्तिपिए एमणागोयरस्म पलिम,चक्यूलोलुए इरियावहि या प्रतिमधु,इछा लोभे मुत्तिमागस्य पलिमंधू. भुजोर निया