________________ 'श्री बृहत्कल्पसूत्रं / उद्देशकः 4) 55] . गणाव छेउ यत्तं भनिविखविता सभोगारियाए उव संपजिनाणं विहरित्तए कप्य से पच्छे यस्य गच्छद्रय निविस्यविना अन्नं Mi संभोगारिया सरपोजना बिपिनाए नो से कप्पर अगाछित्ता आय रिस वा नाव पाचच्छेदय वा अन्न 7 संभोगपरियाए उचसज्जिताया कि हरिता मापार से भापच्छिन्ना भारिय वा जाच गणारच्छेद्यं बा भन्न IT सभोगारियाए उत्सज्जिताण चिहस्तिए ते य से चियरोट एच मे कप्प भन्ने सभोऽपरियारः उवमपज्जिताण विहोरनए तेय से जो विटारति एल मे जो कप्पर अन्न गण संभोगपरियाए उवमपन्जिनाणं विस्तिए जन्तरिय धमविणय लभेज्जा एव से कप्य अन्न | मंभो. गपटिगा उत्तमज्जिताण विहरित्तए जत्युत्तरिय धम्मोवणय नो लभेजा एवं से नो माया अन्न ' संभोगपरियाए उवसपजित्ताण विह रित्तर ॥सू.१९॥ भायरिय उवज्झाए य गणाभो अबक्म्म इच्छज्जा अन्न गण संभोगपरियाए उत्तसंपज्जितात विहरितए नो से कप्पइ आयरियावज्झायरस आयरियालझायन अनिटिविता संभोगपोउयाए उम्मपज्जिताण विहः रित्तए कपड़ से आरियउयज्झायन्स भारियउवझायत्तं निक्रियांवताण अन्ला | सभोगपोरयाए उचमपजिन्ना विहरिनए नो से कप्पड़ अणापुच्छित्ता भायरिय ला जातर गणावच्छेश्य वा अन्जन गण मभोग परि. याए उवमपज्जिताण चिहरितः, कप्पा से आपुच्छिन्ना आर्याश्य वा जा व गणाच्या अन्न गण मभोगपरियाए उव संपज्जिताण वितरित्तए. ते य से वियति एवं से कप्पर अन्न गण संभोरापरिधाए उक्सपजिलाणं विहरित्तए, ने य मे जो वियति एव से जो कप्पा अन्नं गण संभोगपरियाए उवमरजिना वित्तिए जल्धुत्तरियं धम्मविणय लभेज्जा एवं से कप्य. 3 अन्ज IT सभापडियाए उवसपोज्जत्ता विह रित्तए जत्थूत्तरिय ध.. म्भवणय जो लभेजा एव से जो कप्पइ अन्नं गणं मंभोगपरियाए उम्म. पज्जित्ता वित्तिय ॥सू.२०॥ भिवस्य य इच्छेज्जा अन्न आयरिय वज्झाय उहिसावेत्तए,जो में कप्या अणापुच्छिता आयरिय वा जाव गणावच्छेद्य वा अन्ज आयरियावज्झायं उहिसावेत्तए, कप्पद से आ. पुच्छित्ता मारिय चा जाच गणाचच्छेद्यं वा अन्ज आयरियवयाय PREssRESSES