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________________ 免免染染免染染染免染染免染染 ' श्री बृहत्कल्प सूत्र : उद्देशक 4] [53] ' णे अन्नेसि वा दल (अणुप्पटे माणे भावज्जर सम्मासिय परिहा रहाणं उग्धाइयं ॥सू.१॥नो कप्य निगान्धाण वा निगान्धी त्रा असणं वा पर अद्ध जोयणमेराए उवाइणावेत्तए से घ माहच्छ उवाइणाविए सिया तं जो अप्पणा भुजेज्जा नो अन्ने मि अणु प्यदे ज्जा एगन्ते बहुफामुए पए से परिलहिता पमंजित्ता परिवेयले मिया, अप्पणा भुञ्जमाणे अन्लेमि वा दलमाणे आव ज्जइ चा3म्मासिय परिहारष्ट्राणं उग्घाइय 439 / . 12 // जिगन्धेण य गाह चरकल पिण्वायरियाए अणुप्यौवढे अन्जयरे चिते अणेस 'णजे पाणभोयणे पडिग्गाहिए मिया त्धि य त्य केइ मेरतराए भणुबट्टावियए कप्पइ से तम्म दाउ अणुप्पदावा, नन्धि य इत्य केई सेहतराए अण्वाचियए त जो अप्पणा भुनेजा नो अन्नर दायए (अणुप्पटेज्जा) एगन्ते बह फासुए पएसे परिलहिता पमजिने परिवेयव्चे सिया'१६३॥सू.१३॥जे करे कप्पटियाणं कप्पा के अकदियाणं नो से कप्पइ कटियाणं, जे करे अकहियाण / नो से कप्पइ कहियाणं कप्पद से अकड़ियाण, कप्ये हिया कप्पडिया अकप्पे हिया अकटिया .14 // भिक्यू य गणाओ अवकुम इच्छेज्जा अन्ज गण ग विह दिए नौ से कंप्यइ अणापूच्छित्ताणं आरियं वा उवज्झायं चा पनि / वा घेरं वा गणि वा गणहरं वा गणावच्छहयं वा अन्नं गणं उवस. पज्जिनाण विहरिनए, कप्पड़ से आपुच्छिन्ना आयरिय वा जाव गणाचच्छेइयं वा अन्नं गण उपसंपज्जित्ताण विहरितए, य मे वियरेजा एवं से कप्पइ अन्नं गणं उपसंपज्जित्ताणं विहरित्तए,तेय मेनो कियरेज्जा एवं से नो कप्पड अन्नं गणं उचसज्जिनाणं वितरिनए '५४॥सू.१५॥ गणाचच्छेइए य गणाओ अवकुम्म इच्छज्जा अन्ज गण उवसंपज्जित्ताणं विह रित्तए नो कप्पर गणावच्छेक्यस्म गणावच्छइयत्तं अनिविघवित्ता अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताण विहस्तिए,कप्य मे गणाचच्छेद्यस्म गणाचच्छेश्य निवियचित्ता अन्नं गणं उवसंपजि नाणं वि रित्तए नो से कप्य अणापुच्छिता आयरियं FFERESERPRESS
SR No.004370
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nishith, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, agam_dashashrutaskandh, agam_jitkalpa, & agam_panchakalpa_bhashya
File Size7 MB
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