________________ BREARRRRRY श्री बृहत्कल्प सूत्र उद्देशक 3] '२५॥सू.२॥ नो कप्पर निगांधाण वा जिग्गंधीण वा सागरिय संतियं सेज्जासंधारयं आयाए अविगरणं (25) कटु सच्याइत्तए कप्पा निगांधाण वानिगाधीण वा पाडिहरियं वा सागोरेयसीले यं वा सेज्जा मंधारयं आयाए विगरणं कटु संपन्नइत्तए 130 // सू.. ॥इह स्खलु निगाधाण वा निगांधीण वा पाहिहारिए वा सागारियमति ए वा सेज्जासंधारए विप्पणमज्जा परिभट्टे सिया से य अणुगवेसि यच्चे, सिया से य अणुगवेसमाणे लभेजा तस्सेव अणुप(परियाय ये, सिया से य अणुगयेसमाणे नो लभेज्जा एवं से कप्यइ दौञ्चोप उग्गहं अणुण्णवेत्ता ओगिपित्ता) परिहार परिहरित्तए 164 // .23 // जोहवस चणं समणा निग्गंधा सेज्जासंधारयं विप्पजहंति दिवस च जे अबरे समणा निगांधा हव्यमागच्छेज्जा सवेव ओगाहस्स पु. वाणुन्नवणा चिद् अहालन्दमवि उग्गहे॥सू.२४॥ अस्थि या इत्य कई उवस्मयपरियावन्नए अचित्ते परिहरणारिहे सचेच उग्गहस्म पुष्टाणुन्नवणा चिटुइ अहालन्दमवि उगडे १०१८'सू.२५॥ मे वत्सु अध्वावडेसु अव्योगडेमु अपरपरिहिएमु अमर पनि गाह एसुस व उगहम्स पुयाणुन्नवणा चिटुइ अहालन्दवि उग्गहे ॥स.२६॥से वधूम वावडेसु वोगडे परपरिणहिए भिम्भावस्स अदाए दोषि उग्गहे अणुन्न चेयव्ये मिया अहालन्द मवि उग्गई ५०॥सू.२०॥से अणुकुसु वा अणुभित्तीमु वा अणु चरियासु वा अणुफरिहामु वा अणुपंधे वा अणुमेरासु वा स चैव गहस्स पुवाणुन्नवणा चिटुइ अडालन्दमवि उग्गहे '111.20 // / से गामंसि वा जाव रायहाणीए संनिवेससि वा बहिया सेण्णं मान विद पेहाए कप्पा निग्गंधाण वा निग्गंधीण वाताहवसं भिवरचाय रियाए गंतूणं परिनियत्तए,जो से कप्य तं रयणि तत्व उवाइ गावेत्तए जोखलु निग्गंधे वा निगगंधी वा तं रयणि तत्धेव उवा इणायेई उयाइणावेंतं वा साइज्जइ से दुइओ अइक्कममाणे आवज्जर चाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्घाइयं ११५५'।सू.२१॥से गामंमि वा नाव संनिवेससि वा कप्पइ निगगंधाण वा निग्गंधीण या सचओ కనకదురు