________________ 288 पीजीन कल्पसूत्र कोस बहुमो वा पउचिनो तु तैणिथं कुति पहरीत जो य मंत्र मरे, णिवेवस्घो घोरपरिणामो॥७॥अभि सेओ सब्वेसु य, बहुमो पा संचिथावगहेमु / भणबहप्यातिमु,पसज्जमाणो भणेगा // कीर्सते अणवटप्यो, मो लिंग-क्येन-काल यो तवयो / लिगोण दब्बसावे मि यो पचावणाऽणरिहो।।१॥अप्पारविरयोमण्यो, भाव-लिंगारिहो ऽणद उप्यो।जो जेण जत्व दूति, पडिमिडो तत्व मोघेते॥जत्तियमेतं का लं, तवमा उ जहण्णएण छम्मामा। संक्चर-मुम्कोस,आमाती जो जिण दीण // 1 // वाम बारम वामा, पोडेसेवी कारणे तु सो घाघोद चोर तरं वा, वहेज मुच्चेज्ज वामध्यं ॥१२॥वंदति ण य बौदज्जति, परिहार तवं मुदुच्चरं चरति। मंचासो से कयति,णालवणाटीणि सेसाणि॥३॥ तित्वार पनयण सुतं, आरिथं गणहरं महिइटीयं। आसाएन्तो हो आभिणिवेसे पारंची॥१॥जो य मलिंगे हो, कसाय-विमपीरें श. यवही यरायगगहिमि-परि मेवभो य बहुमो पगासो थ।।५।। श्रीण ... टे-महादोमो. अण्णोण्णासवणा-पसतोपाचारमन्दमाणात्तिम्बासी य पसज्जए जो 3॥६६॥सी कीरति पारंची, लिगाओ चैत्तकाल मो . तो। संपागरपोरे सेवी, लिंगाओ धीगिडी य॥७॥माह-णिवेमणा-या उग-साहिणि-मओयपुर-देसरज्जाभो / श्येत्ताओ पारंची,कुलाण-संघाल्या ओ चा॥९॥ जत्थुप्पण्णो दोसो, उप्पग्लिसति य जत्य णाऊण तत्तो तत्तो फीरीत, खेताओ स्वेतपारंची // 1 // जतियमेतं काल, नवना पारंचिया उस एव / कालो दुधिगप्पस्म धि अणवटुप्पस्म जोऽभिहितो॥१०॥एगाजी सैनबाद, कुणति तवं मुविपुलं महामस्तो अवलोवण-मारिओ, पातोटे से गो कुणति तस्स // 1.1 // अणवहप्पो तक्मा नवपारंची य दो विचौहिणा ।चोदमपुरधरम्मि,धरेंति सेमा नुजा तित्यं / / 12 / / इति एस जीतकच्यो.म 'मासतो मुविहिताणुकंपाए।कहितो देयोऽयं पुण, पत्तेमु परिधिय गुणेम्॥१३॥ // इति श्री जीतकापसूत्रम् / / पू. पन्यास श्रीजिनेन्द्रावजयगणिशोधित लिखितं इदं श्री जीतकल्पसूत्रं हालारदेशोछारका-भाचार्धदेव भीधि - जयामृतसूरीश्वर-विनेय-पू. पन्नयाम प्रवर श्री जिनेन्द्रनिजयाणिवा चर्ति-सा सीमोन्द्रप्रभाश्री-तचिस्या-सा श्री सुरेन्द्रप्रभातचिमासा स्वयंप्रभाभिः नामनगरे वि.स. 2034 श्रावण गुस्त पञ्चम्भाम॥ शिवमस्तु सर्वजगतः