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________________ श्री दशा श्रुत स्कन्धसूत्रं 00 दशा 4] [249 हपरिणा णाम मठमा सू०५॥ से नि ते भायारसंपया 12 उविहा पन्नत्ता त जहा राममधुबजोगजुत्ते भावि भवति, असंपाहियच्या. (ज्जएर अणियतवित्ती. सीले यावि भवति से तं आधारसंपना। सू०६॥ से कित सुयसपदा।२ चविहा पणाचा, तंजहा. बसुते याविभवति. विचित्तरस्ते, परिचितसुरे घोसविसुद कारट यानि भवति, से तं सुयसंपदा / सू०७॥ से कित सरीरसंपदा 12 चउबिहा पा - त्ता, तनहा- आरोहपरिणाहसंपन्भे भावि भवति, अणोतप्यसरीरे, पिरसंश्यणे, बहुपठिपुरोदिए यावि भनति, से त सरोरसपहा ॥१०॥से मिले बयणसंपदा 12 चाबिहा पन्नत्ता, तंजहा- आरिखमयणे शावि भवति म हुररथणे, अणिरिसयवयणे, फुडवयणे याविभवति,सेतं नयणसंपा ॥स०९॥ से कितं वाथणासंपदा 12 चल्हिा पन्नता, तंजता-निपू उदिसति विजयं वाएति परिनिवारियं - एति भत्थणिज्झाएमएति से तं वायणा सपा // 10 10 // से कितं मतिसंपरा 12 चलिहा पचानं जहा-उगहमतिसंपदा ईहामतिसपहा भवाथमतिसंपहा धारमामलिन से किसं उगहमतिसपहा 12 धािहा पन्नता. तंजहा- शिवमं भी भिण्ड तिबहोमिहति बहविह मोभिण्डतिधर्व मोहति अणिप्सियंभोगिमहति असंदिर भोशिण्हति, से तं गहमतीश एवं ईहामतीवि.एवं अमायमतीवि से मि तं धारणा-मती 12 धबिहा पण्णता, तंजवा-धरोति बहविहंधरेति पुराण धरोनि दुहरं धरति अणिस्सियधरेति असंदिवं घरोति, से तं धारणामती, सेतं मतिसंपदा ॥सू०११॥ से निपभोगसं. . पहा। रचब्धिहा पन्नत्ता, तजहा- आयंरिदाय वा पांजित्ता भवति परिसं विदाथ वाई परजिता भवति, श्वेत विहाय बादं पजिला भवति, बन्धु विराय वाद पउंजिता भवति.सतं पोगसंपासुसकिने संगह परिण्णासंपदा 2 चलिहा पन्नत्ता, तंजहा-बदजणपाउरगताए वासावासासु रिपत्तं पग्लेिहिता भवति बहुजणपाओगत्तार पारिवारिय पीउफरलासेआसथारयं भोगिणिहत्ता भवति कालेण काल समाणपत्ता भवति, आहागुरु संपत्ता भवति, से तं सगह परिसंपरा . नाथरिथत्तों अंतेवासी इमाए चउनिहाए विणयपडिवत्तीय विणता नि
SR No.004370
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nishith, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, agam_dashashrutaskandh, agam_jitkalpa, & agam_panchakalpa_bhashya
File Size7 MB
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