________________ श्री व्यवहार सूत्रं :: उद्देशकः६] 1229 .रि भट्ठे सिया / कथ्य तेमि, मंनिसण्णाण वा तुयट्टण वा उत्ता. याण वा पासिल्लया वा आयारपकप्पे जाम अज्झयणे दोघ्यपि तच्चं मि परिपुच्छित्तए वा परिमारित्तए वा २॥४४॥१८॥जे निग्गन्था य निधीओ य संसोइया मिया / जो एहं कप्पा तासि अन्नमन्जस्स अंतिए आलोएसए / अस्थि या इत्थ णं के आलोयणारिह कप्पाइ से तेभि अंतिए मालोएतए राजधि या इत्य केइ आलोयारिहे एवं हं, कप्पइ अन्जमज्जस्म अंतिए आलोएत्ता 4 / 75 / . 19 / / जे निधा य निगाजीओ य संभोड्या मिया शनी तेसिं कप्पद अन्न मज्जे मेशावच्चं कारवतए, अस्थि या इत्य कोड यावच्चक कप्पड़ प, तेणं यावच्चं करावेत्तएशनतिर थाइ एह इत्य के वैयावच्चाकरे एवं एहं कप्पद अन्नगन्नेणं वेथावच्चं कारवेत्तए ॥९॥मू.२०॥ नियणन्धं च गं राओ वा विधाले वा दीडपट्टोलमेज्जा, स्थी वा पुरिमास मा. मज्जेज्जा, पुरिसो वा इत्थीए आमज्जैज्जा ।एवं मे कम्पइ.एवं से चि. दाइ, परिहारं च से न पाउण३, एम कप्पे धेरकप्यिशाणं रा एवं से जो कप्प३, एवं से जो चिहाइ, परिहारं च जो पाउणइ,एस कप्पे जिण-कोप्ययाणति बेमि 3 / 143 // 22 // पंचमी उद्देसी // 5 // . अथ षष्ठोद्देशकः। भिवयू य इच्छेज्जा लावा, एलए 1, जो से कप्पइ धेरै अणापुच्छिन्ता नार्यावहिं एसए कप्यइ से घेरे आपुच्छित्ता नार्यावडैि एत्तए / घेरा य से वियरेज्जा एव से क. ध्या जायविहिं एत्तए, धे। य से नो वियरेजा एवं से नो कप्पड़ नार्यावाहे रत्तए 3/ जंत- हें विइण्णे नाविहि एइ से म. तरा छ वा परिहारे वा 41 जो मै कप्पई अप्पमुयस्य अध्याग मस्स एगणिय जार्थावा, एत्तए / कप्पर मे ने तत्प बडू सुए बझागमे तेण साडे जायावहिं एत्तए / लत्य से पुवा गमणेण पुब्बाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउते मिलिगसूत्रे, प्य यै चाउलादण पोरेगाहेलाए जो से कप्पर भिलासले पोराडेतए / तन्य पुयारामणे पुवाउने भिलिगसले पाउले चाउलोदणे,