________________ . श्री व्यवहार सूत्र : उद्देशकः२] 219] वा जाव परिजना वा रानी चैव संभोइयं साहम्मियं बहुम्म यं गन्नाम पामेला जन्धेव अन्जन्संभोइयं साहम्मियं बहुम्सुयं बमागम पामेला अप्पर में तम्सनिए भालोएनए वा जाव परिवज्जेनए ना // लो चेन // भन्नमभोट माइम्मिय बहुस्सुयं बज्मागर्म पामेजता रोज साविथ बहस्मय अमागम पामेज्जा कप्पड मेन स्मनिए भालाना ना नात्र परिवज्जैनाए बालो व गं मारूविय बहुम्सुय बना पायेता जत्थे ममणोवामा पच्छाकर बहुम्मथ ज्यागम पासेन्ना पर मेनम्मंतियं भालोएनए वा परिक्कमेतए वा जात पानि परिन्तित्ताए वा पानो ने ममणोनामा पच्छाक र बहम्मुर बन्माम प्रामैना नवि सम्मभाविधाइ बेश्याइ पामेज माग में नमानिा- मालारत्ता वा जाब पार्थाच्छन्नं परिवज़िनए वा 6 जो चेव गम्मभाविया बेड्या पासेज्जा बहिया गामस्म वा जाव # जिनसम्म वा गणाभिमुहेण वा उदीणाभिमुहेण वा करयलारपहिय निरभावनं मधार भंजलि कटटु कप्पा मे एवं वएनए-एवइय में अवगह) एखडक्युतो य म अवरखो, अरहंता सिद्धाण अन्तिए आलोएज्जा परिक्कमेज्जा जिन्दजा नाव पाच्छिनं परिवज्नेज्ञामिति ) 1173 // 5.5 // पठमो रहेमभो // 1 // .. अथ द्वितीयोद्देशकः। दो साभिया एण्यभो विरंति, एगे तत्य अन्नयर विश / दाणं परमविता मालीरजा, वणिज्ज स्वत्ता करणज्ज वेथानोरया. दो साइम्मिया भो विति टोधि ते अन्नयन अगिच्चदाणं पोडेसे चिन्ता आलोएन्जा ए तय कप्याग हवात्ता एगं निक्सिज्जा, अह पच्छा से वि निलिमेज्जा ॥सू.२॥बले साहम्मिया एगयो विहरंति, एगे तस्य अन्नय 2 अकिच्चहा परि मेविना आलाएज्जा, वणिज्ज हवात्ता करणिज्ज व्याय डियं ॥३॥बहवे साहम्मिया एगो विहरति, मध्यवि ते अन्नयर - किच्चटहाणं परिमेवित्ता आलोएज्जा, एग तत्य कप्या हवात्ता अवसेसा निव्यिमेजा. भइ पछा मेचि लिब्धिमेजा 451-मू.४॥ परिहारकप्पटिहए भिक शिलाथमाणे भन्नगर भकिचरा परि मेविना आलोएज्जाश . 聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽