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________________ 2, 3-16 ] ववहारसुत्तं [ 19 पडिसेवित्ता आलोएजा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता एगे निविसेज्जा, अह पच्छा से वि निविसेज्जा / 3. वहवे साहम्मिया एगयओ विहरन्ति; एगे तत्थ अन्नयरं अकिञ्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, ठवणिज्ज ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं / 4. बहवे साहम्मिया एगयओ विहरन्ति; सव्वे वि ते अन्नयर अकिञ्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता अवसेसा निव्विसेज्जा, अह पच्छा से वि निव्विसेज्जा। 5. परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू गिलायमाणे अन्नयरं अकिञ्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, से य संथरेज्जा, ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं; से य नो संथरेज्जा, अणुपरिहारिएणं करणिज्ज वेयावडियं / से तं अणुपरिहारिएणं कीरमाणं वेयावडियं साइज्नेज्जा, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयवे सिया। 6. परिहारकप्पट्ठियं भिक गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जहित्तए। अगिलाए 10 तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायङ्काओ विप्पमुक्को तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया / 7-17. . 'अणवठ्ठप्प....,पाराश्चयं....,खित्तचित्तं....,दित्तचित्तं....,जक्खाइटें....,उन्मायपतं....,उवसग्गपत्तं....,साहिगरणं....,सपायाच्छन्तं....,भत्तपाणपडियाइक्वित्तं ....,अट्ठजायं पिक्...., ( जहा 6 )....पट्टवियव्वे सिया।। 15 18. अणवट्ठप्पं भिक्खु अगिहिभ्यं नो कप्पइ तस्स . गणावच्छेइयस्स उवट्ठावित्तए / 19. अणवठ्ठप्पं मिक्खं गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावित्तए / 20. पारश्चियं भिक्खुं अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावित्तए / 21. पारश्चियं भिक्खं गिहिभूयं कप्पड़ तस्स गणावच्छेइयम्स उवट्ठावित्तए / 22. अणवठ्ठप्पं भिक्खू अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तम्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावित्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तिय सिया / 23. पारश्चियं भिक्खं अगिहिभूयं 20 वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवठ्ठावित्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया / 24. दो साहम्मिया एगओ विहरन्ति; एगे तत्थ अन्नयरं अकिञ्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा:-. 'अहं णं भन्ते अमुगेणं साहुणा सद्धिं इमाम्म कारणम्मि पडिसेवी' से य पुच्छियव्वे किं पडिसेवी ?' से य वएज्जा 'पडिसेवी' परिहारपत्ते; से य वएज्जा 'नो पडिसेवी' नो परिहारपत्ते / जं से पमाणं वयइ, से पमाणाओ घेयव्वे / से किमाहु भन्ते ? सच्चपइन्ना ववहारा / 25 ... 25. भिक्खू य गणाओ अवकम्म ओहाणुप्पेही वज्जेज्जा, से य अणोहाइए इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जिताणं विहरित्तए, तत्थ णं थेराणं इमेयारूवे विवाए समुप्पजित्था -- इमं भो जाणह किं पडिसेवी ? ' सेय पुच्छियव्वे किं पडिसेवी ?' से य वएज्जा * पंडिसेवी' परिहारपत्ते / से य वएज्जा * नो पडिसेवी ' नो परिहारपत्ते / जं से पमाणं वयइ से पमाणाओ घेयव्वे / से किमाहु भन्ते ? सच्चपइन्ना ववहारा। 30 - 26. एगपक्खियस्स भिक्खस्स कप्पइ आयरिय-उवज्झायाण इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारित्तए वा, जहा वा तस्स गणस्स पत्तियं सिया /
SR No.004353
Book TitleKalp Vyavahar Nisheeth Mul Matra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nishith, agam_bruhatkalpa, & agam_vyavahara
File Size9 MB
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