________________ जैनगीतासम्बन्धः 136 00000000000008sna 000000000000000000000 000000000000000000000 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 क्रमात् स्वराज्यमासाद्य कुर्वन् धर्म जिनोदितम् / पूजां श्रीवृषभेशस्य चकार प्रतिवासरम् // 9 // प्रान्तेऽजयनृपोऽनन्त-रथं स्वं नन्दनं वरम् / स्वपट्ट न्यस्य जग्राह संयमं गुरुसन्निधौ // 11 // अनन्तरथभूपस्य पुत्रो दशरथाभिधः / बभूव विक्रमाऽऽक्रान्त-वैरिवर्गो महाभुजः // 12 // अन्यदा संसदि क्षमापे निविष्टे नारदो मुनिः / आगतो भूभुजा पृष्टो वातां विनयपूर्वकम् // 13 // कुत भागास्त्वं किं दृष्टं ? ततो नारद ऊचिवान् / महाविदेहमध्येऽस्ति नगरी पुण्डरीकिणी // 14 // तत्र सीमन्धरस्तीर्थ-करोऽलात् संयमश्रियम् / महोत्सवो महान् दृष्टः क्रियमाणः सुरेश्वरैः // 65 // यतः-"अह अन्नया कयाइ सहाए मज्झम्मि दसरहो राया। चिट्ठइ सुखासणत्यो तावत्तिय नारो पत्तो॥१॥ अब्भुट्टिो य सहसा नरवहणा ओसणे पुह निसन्नो / परिपुच्छि प्रो य भयवं कुतोऽसि तुमं परिभमीओ ? // 2 // दाऊणं अासीसं भणइ तो नारो जिणहराणं / वंदणनिमित्तहेउं पुव्वविदेहे गो अहयं // 3 // अहं पुडरीगिणीए सीमंधरजिणवरनिक्खमणं दिट्ठ / मए महायस ! सुर-असुर-समाउलं तत्थ // 4 // सीमंधरं भगवंतं नमिऊण चेहयाई तत्य पुणो / मंदरगिरि गोऽहं पणमामि जिणालये उड्ढे // 5 // " केचिदाहुः-"एवं इक्खागकुले समइक तेसु नरवरिंदेसु / साएयपुरवरीए अणरणो पत्थियो जात्रो // 1 // तस्स महादेवीए पुहईए दो सुश्रा समुप्पन्ना / पढमो अणंतरहो (अ) बीओ पुण दसरहो नाम // 2 // अणरणो वित्र नरवइ पुत्तं चित्र दसरह ठवित्र रज्जे / निक्खमइ सुयसमग्गो पासे मुणि अभयसेणस्स // 3 // छहमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखवणेहिं / काऊण तवं घोरं अणरणो गो मोक्खं // 4 // साहूवि अणंतरहो अणंतबलवीरित्रसत्तसंपन्नो। संजमतवनियमरो संपत्तो सासयं ठाणं |" तस्य न्यायाध्वना पृथ्वी-पीठ पालयतः सदा / चतस्रो वल्लभा आसन् शीलरत्नविभूषिताः / / 6 / / कौशल्या ककेय्याह्वा च सुमित्रा सुप्रभा तथा / रूपनिर्जितकन्दःपत्न्यो नाम्ना क्रमादिमाः ॥६७||युग्मम्।। कुम्भसिंहेभमार्तण्ड-स्वप्नाभिसूचितं सुतम् / कौशल्याऽसूत तनयं रामं पद्म च नामतः ||18|| सिंहान्दुगजाग्निश्री-वाचिस्वप्नोपसूचितम् / सुमित्रा लक्ष्मणं नारा-यणं सूते स्म नन्दनम् // 66|| कैकेयी सुषुवे सुष्टु-स्वप्नाढ्य भरतं सुतम् / अश्वत सुप्रभा पुत्रं शत्रुध्नाभिधमद्भुतम् // 10 // पद्मनारायणौ प्रीति-भाजौ जातौ क्रमान्मियः / शत्रुध्न भरती प्रेम-परौ परस्परं पुनः // 101 // इतश्च मिथिलापुर्यां भूपोऽभूजनकाभिधः / हरिवंश्या विदेहेत्य-भिधा तस्याऽभवत् प्रिया / / 102 / पुत्रपुत्रीयुगं वयं विदेहा सुषुः सुखम् / प्रागजन्मवैरतोऽहार्षीत् पिङ्गलभुः सुतं रहः // 103 // सञ्जातकरुणो देवो भूषणैः कुण्डलादिभिः / भूषयित्वाऽमुचत्तं तु वैताट्यस्य बने क्वचित् / / 104 // रयनूपुरतः स्वामी खगचन्द्रगती रहः / तमासाद्यार्पयत् पुष्प-वत्या पत्न्यास्ततो जगौ // 10 // त्वयोच्यं तनयोऽसावि मयाऽथ गूढगर्भया / पत्योक्त विहिते पत्न्या भूपो जन्मोत्सवं व्यधात् // 106 / / सन्मान्य सजनान सूनो-देहे भामण्डलेक्षणात् / भामण्डल इति क्षमापो नामाऽदात सज्जनान्वितः / / 107 // लाल्यमानस्तदा मित्रा भामण्डलो दिने दिने / यौवनं युवतीमोह-करं प्राप स रूपभाग // 108 // इतो हृतं सुतं मत्वा विशोको जनको नृपः / सीताभिधां ददौ पुव्याः सर्वसजनसाक्षिकम् // 10 // सम्प्राप्तयौवनां सीतां दृष्ट्वा जनकभूपतिः / वरचिन्तापयोराशौ पपाताऽतनुविक्रमः // 110 //