________________ विभाग] सिद्धभात्यादिसंग्रहः पञ्चगुरुभक्तिः श्रीमदमरेन्द्रमुकुटप्रघटितमणिकिरणवारिधाराभिः / प्रक्षालितपदयुगलान् प्रणमामि जिनेश्वरान् भक्त्या // 1 // अष्टगुणैः समपेतान् प्रणष्टदुष्टाष्टकर्मरिपुसमितीन् / सिद्धान्सततमनन्तानमस्करोमीष्टतुष्टिसंसिद्धथै // 2 // साचारश्रुतजलधीन्प्रतीर्य शुद्धोरुचरणनिरतानाम् / आचार्याणां पदयुगकमलानि दधे शिरसि मेऽहम् // 3 // मिथ्यावादिमदोग्रध्वान्तप्रध्वंसिवचनसंदर्भान् / / 'उपदेशकान्प्रपद्ये मम दुरितारिप्रणाशाय // 4 // सम्यग्दर्शनदीपप्रकाशका मेयबोधसंभूताः। भूरिचरित्रपताकास्ते साधुगणास्तु मां पान्तु // 5 // . : जिनसिद्धसरिदेशकसाधुवरानमलगुणगणोपेतान् / पश्चनमस्कारपदैस्त्रिसन्ध्यमभिनौमि मोक्षलाभाय // 6 // 15 20 अनुवाद जेओना चरणकमल इन्द्रोना सुशोभित मुकुटोमां जडेला मणिओना किरणरूपी जलधाराथी - प्रक्षालित करवामां आव्या छे, एवा श्रीजिनेश्वर भगवंतो(-अरिहंतो)ने हुं भक्ति पूर्वक प्रणाम करूं छु // 1 // .. जेओ अनंतज्ञानादि आठ गुणोथी अलंकृत छे, अने जेओए अत्यन्त दुष्ट-दुःख देवावाळा आठ कर्मरूपी शत्रुओना समूहने नष्ट करी नाख्यो छे, एवा अनन्त सिद्धोने हुं अत्यन्त इष्ट एवी मोक्षलक्ष्मीने प्राप्त करवा नमस्कार करुं छु // 2 // आचार अने श्रुत समुद्रोने तरीने जेओ शुद्ध अने पराक्रमवाळा चारित्रनुं पालन करवामां सदा तत्पर छे, एवा आचार्योना चरण-कमलोने हुँ मस्तक पर धारण करुं छु // 3 // .. जेओना वचनोनी रचना मिथ्यावादिओना अहंकाररूपी अंधकारने नाश करवावाळी छे, एवा उपाध्यायोनुं हुं मारा पापरूपी शत्रुओनो नाश करवा शरण लउं छु अर्थात् तेओनाःशरणे जाउं छु // 4 // जेओ सम्यग्दर्शनरूपी दीपकथी भव्यजीवोना मननो अन्धकार दूर करी तेओना मनने प्रकाशित 25 करनारा छे, जीवादिक समस्त पदार्थोना ज्ञानयी सुशोभित छे अने विविध चारित्रनी पताका जेओए फरकावी छे, एवा साधुसमुदायो मारी रक्षा करे // 5 // जेओ अनेक निर्मल गुणोना समूहथी सहित छे, एवा अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने उत्तम साधुओने ई मोक्ष प्राप्त करवानी इच्छाथी पंच-नमस्कार मंत्रना पदोवड़े त्रिसन्ध्य नमस्कार करुं छं॥६॥ 30