________________ विभाग] 307 सिद्धमत्यादिसंबहः कैवल्यज्ञानदृष्टिप्रवरसुखमहावीर्यसम्यक्त्वलम्धि- - ज्योतिर्वातायनादिस्थिरपरमगुणैस्कुतैमासमानः // 3 // जानन् पश्यन् समस्तं संममनुपस्तं संप्रतृप्यान्वितन्वन् , धून्वन् ध्वान्तं नितान्तं निचितमनुसभं प्रीणयन्त्रीशभावं / कुर्वन् सर्वप्रजानामपरमभिभवं ज्योतिरात्मानमात्मा, आत्मन्येवात्मनासौ क्षणमुपजनयन् स स्वयम्भूः प्रवृत्तः // 4 // छिंदन शेषानशेषाभिगलबलकलींस्तैरनन्तस्वभावैः, सूक्ष्मत्वाग्यावगाहागुरुलघुकगुणैः क्षायिकैः शोभमानः।. अन्यैश्वान्यव्यपोहप्रवणविषयसंप्रातिलब्धप्र(स्व)भावटुं व्रज्या स्वभावात् समयमुपगतो धाम्नि संतिष्ठतेऽध्ये // 5 // 10 ए आत्मा पोताना रत्नत्रयरूप शस्त्रना प्रबल प्रहारथी जे वखते घातिकर्मोने नष्ट करी दे छे तेज वखते ए आत्माने केवलज्ञान, केवलदर्शन, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य, अत्यन्त निर्मल सम्यक्त्व, क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, क्षायिक उपभोग, यथाख्यात चारित्र, भामण्डल, चामर, छत्रत्रय वगेरे अनेक अनुपम विभूतिओ प्राप्त थाय छे / आ विभूतिओमाथी ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, सम्यक्त्व वगेरे विभूतिओ तो आत्म-स्वभावरूप होवाथी शाश्वत छे अने भामण्डल, चामर, छत्र, सिंहासन, 15 वगेरे विभूतिओ देवोपनीत छे अने ते शरीरना संबंध सुधी रहे छे। आ बधी विभूतिओ अद्भुत छे अने एमनु अचित्य माहात्म्य स्पष्ट देखाय छ / ... ज्यारे आ आत्मा घातिकर्मोनो नाश करवाथी उपर लखेला अचिन्त्य अने परम गुणोथी देदीप्यमान बने छे त्यारे से आत्मा खयम्भू अथवा अरिहंत कहेवाय छे। . ए आत्मा समस्त लोकालोकने एकी साथे निरंतर जाणे के अने जूए छे, कृतकृत्य बनेलो होवाथी 20 निरंतरपणे पूर्ण तृप्तिने अनुभवे छे, ज्ञान-प्रकाशने विस्तारे छे, मोहरूपी घोर निबिड अंधकारनो नाश करे छे, समवसरणरूप सभामां अमृत समान दिव्य ध्वनिरूप वचनोथी कल्याणमय उपदेश आपीने भव्य जीवोने अत्यन्त संतुष्ट करे छे, तेमने अत्यन्त आनंदित करे छे, सर्व प्रजाओना ईशभाव (शासन)ने करे छे, सूर्यादि अन्य ज्योतिओ करता अधिक तेजस्वी छे, तथा स्वयं पोतामा ज पोताबड़े पोताने क्षणवार उत्पन्न करतो ए स्वयम्भू प्रवर्ते छे // 3-4 // 25 अंते बेडीओनी समान अत्यन्त कठीन एवा वेदनीय, नाम, गोत्र अने आयुः आ चार अवशेष अघाती कर्मोनी मूल अने उत्तर समस्त कर्मप्रकृतिओने छेदीने अनन्त स्वभाववाळा सूक्ष्मत्व, लोकानावगाह, अगुरुलघु वगेरे परम गुणोथी पण ते भगवान् मुक्तिमां शोमे छे / जे सिवाय समस्त कर्म प्रकृतिओनो नास थवाथी (1) प्राप्त थयेला (अथवा अन्य व्यपोहनेति नेति' वडे वर्णवाता) अनेक अन्य गुणोथी पण ते सिद्ध भगवंत शोमे छे / शुद्ध आत्मानो स्वभाव ऊर्ध्वगमन करवानो होवाथी समस्त कर्मोनो 30 नाश यया पछी ते ज समयमां भगवान् लोकाकाशना अप्रभाग उपर जईने विराजित थाय छे // 5 //