________________ [72-27] श्रीहेमचन्द्राचार्य-विरचितः अर्हन्नामसहस्रसमुच्चयः अहं नामापि कर्णाभ्यां, शृण्वन् वाचा समुच्चरन् / जीवः पीवरपुण्यश्रीर्लभते फलमुत्तमम् // 1 // अत एव प्रतिप्रातः, समुत्थाय मनीषिभिः / भक्त्याऽष्टाग्रसहस्राहनामोच्चारो विधीयते // 2 // श्रीमानईन् जिनः स्वामी, स्वयम्भूः शम्भुरात्मभूः। स्वयंप्रभुः प्रभुर्भोक्ता, विश्वभूरपुनर्भवः // 3 // विश्वात्मा विश्वलोकेशो, विश्वतश्चक्षुरक्षरः। विश्वविद् विश्वविद्य(श्वे)शो, विश्वयोनिरनीश्वरः // 4 // विश्वदृश्वा विभुर्धाता, विश्वेशो विश्वलोचनः / विश्वव्यापी विधुर्वेधाः, शाश्वतो विश्वतोमुखः // 5 // विश्वपो विश्वतः पादो, विश्वशीर्षः शुचिश्रवाः / विश्वदृग् विश्वभूतेशो, विश्वज्योतिरनश्वरः // 6 // विश्वसृड विश्वसर्विश्वेट, विश्वभग विश्वनायकः। विश्वाशी विश्वभूतात्मा, विश्वजिद विश्वपालकः // 7 // विश्वकर्मा, जगद्विश्वो, विश्वमूर्तिर्जिनेश्वरः। भूतभाविभवद्भा, विश्ववैद्यो यतीश्वरः // 8 // सर्वादिः सर्वदृक् सार्वः, सर्वज्ञः सर्वदर्शनः / सर्वात्मा सर्वलोकेशः, सर्ववित् सर्वलोकजित् // 9 // सर्वगः सुश्रुतः सुश्रूः, सुवाक् सूरिबहुश्रुतः। सहस्रशीर्षः क्षेत्रमः, सहस्राक्षः सहस्रपात् // 10 // युगादिपुरुषो ब्रह्मा, पञ्चब्रह्ममयः शिवः। ब्रह्मविद् ब्रह्मतत्त्वज्ञो, ब्रह्मयोनिरयोनिजः // 11 // ब्रह्मनिष्ठः परं ब्रह्म, ब्रह्मात्मा ब्रह्मसम्भवः। . ब्रह्मेड् ब्रह्मपतिर्ब्रह्मचारी ब्रह्मपदेश्वरः // 12 // विष्णुर्जिष्णुर्जयी जेता, जिनेन्द्रो जिनपुङ्गवः। परः परतरः सूक्ष्मः, परमेष्ठी सनातनः // 13 // इति श्री प्रथमशतप्रकाशः // जिननाथो जगन्नाथो, जगत्स्वामी जगत्प्रभुः। जगत्पूज्यो जगद्वन्द्यो, जगदीशो जगत्पतिः // 1 // जगन्नेता जगज्जेता, जगन्मान्यो जगद्विभुः। जगज्ज्येष्ठो जगच्छ्रेष्ठो, जगद्ध्येयो जगद्धितः॥२॥ जगदयॊ जगद्वन्धुर्जगच्छास्ता जगत्पिता। जगन्नेत्रो जगन्मैत्रो, जगदीपो जगद्गुरुः // 3 //