________________ - - दिग्दर्शन * 45 पूर्वकाल के महान् प्रभावशाली जैन आचार्यों और श्रमणों की प्रचंड विद्वत्ता, महान् ग्रन्थकारिता और ज्वलन्त ज्ञान-भक्ति का यह परिणाम है। उन उदार सन्तों ने जैनेतरों के भी न्याय-व्याकरणसाहित्यादिविषयक संस्कृत ग्रन्थों पर टीका-वृत्ति-टिप्पणियाँ रचकर उनके पठन-पाठन का मार्ग सरल कर दिया है। जैन ग्रन्थभंडारों में जैन ग्रन्थों के साथ जैनेतर ग्रन्थों का भी संरक्षण जैन लोग करते रहे हैं। इतिहास-कला भी जैनों की अपूर्व है / गुजरात के इतिहास का मूल जैन इतिहास में है / इतना ही नहीं, गुजरात के इतिहास के संरक्षण का श्रेय भी जैनों को दिया जाय तो भी अनुचित न होगा। अनेक प्राचीन शिलालेखों, पट्टकों, मूर्तिओं, ग्रन्थों, सिक्कों और तीर्थस्थानों में जैन इतिहास की चीजें बहुत प्रचुर प्रमाण में उपलब्ध होती हैं / जैन राजा खारवेल की गुफाएँ, पाबू पर का आश्चर्यपूर्ण नकशीकाम, शत्रुजय पर्वत पर के मन्दिर और जैनों का स्थापत्य ये सब शिल्प-कला के श्रेष्ठ नमूने हैं, और जैनों की शिल्प-कला-प्रियता कितनी हद तक थी इसकी कल्पना में विचारक द्रष्टाओं को निमग्न बना देते हैं। जैनधर्म की पवित्र और व्यापक संस्था प्रिय सज्जनो ! अब मैं उपसंहार पर आऊँ उसके पहले और एक बात कह दूं। देखिए, सत्य हमेशां एक (Universal) है, अलग अलग x नहीं। और सत्य ही धर्म है, अत एव वह एक ही है, अनेक नहीं हो सकता। उसे अपने स्थापक की भी जरूरत ___x " Eternal truth is one, but it is reflected in the minds of the singers.',