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________________ - - -rayan 20 जैनसिद्धान्तजाते हैं / इन बारह अंगों में महत्तम अंग ' दृष्टिवाद ' सिवाय 'आचार ' आदि ग्यारह अंग हाल मौजूद हैं / ऐसे तीर्थकर वर्तमान युग [ ' अवसर्पिणी ' काल ] में चौइस हुए हैं, जिनमें प्रथम तीर्थंकर, ऋषभदेव भगवान हैं और अन्तिम, महावीर देव / वर्तमान धर्मशासन महावीर देव का है और विद्यमान ' अंग'श्रुत उनके गणधर * सुधर्मा ' का / अंग-श्रुत के अलावा और भी ' उपांग ' आदि आगम-शास्त्र विद्यमान हैं, जो, 'सुधर्मा : गणधर की शिष्य-परम्परा में के महान् श्रुतधर ऋषियों के बनाए हुए हैं / ___ भगवान महावीर की जीवन-रेखा सबसे प्राचीन सूत्र 'आचार ' में संक्षिप्त रूप से अंकित है। और ' भगवती ' सूत्र में उनके जीवन से सम्बन्ध रखनेवाली कई बातों का वर्णन है / ' आवश्यक-चूणि ' में उसका अधिक विस्तार है। और आचार्य हेमचन्द्र ने -- त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र ' के दशम पर्व में उसको बड़े विस्तार से संगृहीत किया है। पाश्चात्य विद्वानों ने भी महावीर के जीवन और तत्संगत अन्य विषयों पर बहुत परीक्षाप्रधान आलेखन किया है / भावनगर ( काठियावाड ) के मेजिस्ट्रेट, पारसी विद्वान् ए. जे. सुनावाला, बी. ए., एलएल. बी. महाशय का एक अंग्रेजी पेम्पलेट MAHAVIRA-THE GREAT HER() जो, केम्ब्रीज युनिवर्सिटि प्रेस में मुद्रित हुआ है, भगवान् महावीर के लिए निम्नप्रकार लिखता है: It is now admitted by all that Varilhamana or Nirgrantha Gnataputra, best known as Vira or Mahavira, regarded by the Jainas as the twenty
SR No.004298
Book TitleJain Siddhant Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherBhogilal Dagdusha Jain
Publication Year1937
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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