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________________ 688 जीतकल्प सभाष्य विषय वर्धमान अवधि वाचना-सम्पदा वाटक वात्सल्य विचिकित्सा विनय विनय-अतिचार विनय-आचार विनय-प्रतिपत्ति विपुलमति मनःपर्यव विभूषा विमिश्रभाव विशोधि विहारभूमि वृद्धवास गाथाङ्क विषय गाथाङ्ग 50,51,57 संभोग 2105 179, 183 संयमश्रेणी 1110,1111 2312, 98 संयोजना दोष 1619 1049 संलेखना 341,343 1040 संवर 872, 2378 संसृष्ट दोष 1598 1002 संहरण दोष 1583 1002 सदृश कल्पी 2110 212 समिति .803 74 समुद्देश 890 587 साधर्मिक स्तैन्य . 2313, 2314, 2345 2024 साधार्मिक 1139, 1140 5 सापेक्ष निरपेक्ष प्रायश्चित्त 2202 सामाचारी 880 2184 साही 2514 166 सुखशील 2602 500 सुश्रुतबहुश्रुत 1660 1133-35 स्तेनाच्छेद्य 1274 326 स्त्यानर्द्धि निद्रा 2528 590 स्थण्डिल भूमि 854 167 स्थविर 2258 2004 स्थापना कुल 1775 1371 स्थापना दोष 1220-23 253 स्नान 154,587 1039 स्वस्थान 2104, 2271 171, 173, 174 स्थितकल्प-अस्थितकल्प 1972 639, 640 हस्तालम्ब 2394 हितकर आहार 1632 62 हित वाचना 890 हित-शुभ...... 198! हीयमान अवधि / (आचार-संपदा) वैहायस मरण व्यञ्जन और अर्थ व्याघात मरण व्यायाम श्रुतसम्पदा श्रेष्ठी षट्कर्म षट्स्थानपतित शंका शरीर-सम्पदा शुक्ल शोक संक्लिश्यमान चित्त संखडी संग्रह-परिज्ञासंपदा 224 232
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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