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________________ 686 जीतकल्प सभाष्य 979 880 विषय गाथाङ्क विषय गाथाङ्ग चन्द्रकवेध्यक . 488 नदी-संतार चारित्र-शुद्धि 315 निक्षिप्त दोष 1521, 1534. छंदना सामाचारी 880 निर्ग्रन्थ 284 छेद प्रायश्चित्त 649,650,82 नित्यवासी 2602 जाहक 183 निमंत्रणा सामाचारी जिनकल्पिक 2173 निवेशन 2514, 98 जिनकल्पिक की उपधि 2175 निर्वाण जीतव्यवहार 701 निर्विगय 1492 ज्ञान अतिचार 1009, 1010, निष्कारण निर्गमन 766,767 1015, 1019 निर्हारिम-अनिर्हारिम ज्ञान-दर्शन चारित्र और तीर्थ 313, 314 नैषेधिकी सामाचारी तथाकार सामाचारी 880 नोइंद्रिय प्रत्यक्ष तदुभय प्रायश्चित्त 944 पंचक-यतना तपगर्वित 80 पंचक-हानि तरमाणक 1967 पर्यंक निषद्या तलवर 2004 परमावधि तिर्यग्गामिनी नौका 978 | | परमावधि का उत्कृष्ट क्षेत्र 53 त्रिकटुक परस्पर संक्रमण 2085 त्रिगुण योग 597 परिकर्म 417 त्रिपातन 1102 परिणमन 103 दर्प प्रतिसेवना 584 परिणामक दर्शन प्रतिसेवना 603 परिषद् 194 दायक दोष 1570,1574,1575, परिहार तप 2429, 2432, 2434, 1578 2437, 2438, 2442, 2452, 2457 दूष्य-पंचक 1772 | परिहारविशुद्ध चारित्र - 2123 देवकुल-दर्शन 1358 परोक्ष द्रव्य-उत्पादना 1315 पारांचित प्रायश्चित्त 729,2555 द्विवेदक 2539 पार्श्वतः अंतगत अवधि धारणा 191 पार्श्वस्थ धारणा व्यवहार 655 पिहितोद्भिन्न नक्षत्र 639 पुरतः अंतगत अवधि 1154
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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