________________ 671 गा.१५९० गा. 1550 गा. 2366 गा. 882 गा. 362 जीसू 98 गा. 1335 देशी शब्द : परि-११ वालु-दूध-दुद्ध पयो वालु खीरं च। गा. 1132 | सज्झिल्लग-भाई। विजल-पंकिल मार्ग। गा. 951 | सतिर-तिरोहित। वियर-नदी आदि जलाशय सूख सथली-देहली। जाने पर पानी निकालने हेतु समुद्देस-भोज, सूर्यमंडल। उसमें किया गया गर्त। गा. 537 साह-कथन करना। विरल्लिय-फैला हुआ। गा. 2361 साही-गली, मुहल्ला। विराली-वस्त्र विशेष। विराली सामस्थ-पर्यालोचन। नवओ जीणो त्ति भन्नइ। जीचूवि पृ.५१ सालणग-कढ़ी के समान एक विरोलती-मथती हुई, विलोड़न प्रकार का खाद्य। करती हुई। जीचू पृ.१६ साला-शाखा। विलुक्क-लुंचित। गा. 1237 सिति-सीढी, निःश्रेणी। वोलीण-अतिक्रान्त। गा. 1529 सेंटा-नाक छींकने का शब्द।। वोहत्तिय-गृहीत। गा. 2084 | सेंटिय-नाक छींकने का शब्द।। संकर-मार्ग। गा. 537 सेह-शैक्ष, लघु शिष्य। संखडी-विवाह आदि के उपलक्ष्य हडि-बंधन-विशेष / ... में दिया जाने वाला भोज, मिठाई। गा.८८२, हड्ड-हड्डी। 890,1234 हादण-अतिसार। संगार-संकेत। गा. 1725 हिलिहलय-प्रज्वलित / संघाडी-उत्तरीय, वस्त्र विशेष। जीचू पृ. 18 हेछिल्ल-अधस्तन, नीचे का।। संघिय-दुर्गन्ध युक्त। गा. 1210 गा.१६१४ गा. 2527 गा.३२९ गा.१७२५ जीचू पृ. 17 गा. 2107 गा. 689 गा.६८९ गा.१६२९ गा. 1531 गा.११४२ पुक्ता