________________ परिशिष्ट-८ सूक्त-सुभाषित 251 सूक्ति का शाब्दिक अर्थ है-सुष्ठु-कथन / जिस उक्ति में अनुभूति और अभिव्यक्ति का चमत्कार होता है, वह सूक्ति कहलाती है। जो भीतरी चेतना के परिवर्तन के लिए स्पंदन पैदा कर देते हैं, वे सुभाषित कहलाते हैं। सूक्ति में जीवनभर का अनुभव थोड़े से शब्दों में उड़ेल दिया जाता है। इससे भाषा-शैली में गतिशीलता और सौष्ठव आ जाता है। जीतकल्पभाष्य में प्रयुक्त सूक्तियां और सुभाषित केवल उपदेशात्मक ही नहीं, बल्कि जीवनस्पर्शी और प्रेरणास्पद भी हैं। ___नियुक्तिभाष्य साहित्य का अध्यनन करने से प्रतीत होता है कि भाष्यकार ने कहीं भी प्रयत्न नहीं किया बल्कि सहज रूप से विषय का निरूपण करते हुए वे गाथाएं या चरण सूक्त रूप में अवतरित हो गए। यहां जीतकल्पभाष्य एवं उसकी चूर्णि के सूक्ति एवं सुभाषित संकलित हैं• अविदू सोहि ण जाणति। 155 * अतियारपंकपंकंकितो य आया विसोहिओ होति। आलोइए य आया॥ 249 * अतियारगुरुभरेणं, अक्कंतालोइए लहू होति। * पायच्छित्ते असंतम्मि, चरित्तं पि ण चिट्ठए। चरित्तम्मि असंतम्मि, तित्थे णो सचरित्तया॥ * अचरित्तयाए तित्थे, व्वाणं पि ण गच्छती। णिव्वाणम्मि असंतम्मि, सव्वा दिक्खा णिरत्थिगा। 316 •ण विणा तित्थं णियंठेहिं। 317 * ण हु उड्डगमणकज्जे, हेट्ठिल्लपदं पसंसंति। 340 * णासेति अगीतत्थो, चउरंगं सव्वलोगसारंगं। नट्ठम्मि य चतुरंगे, ण हु सुलभं होति चतुरंगं॥ 357 * किं पुण तं चउरंगं, जं णटुं दुल्लभं पुणो होति? माणुस्सं धम्मसुती, सद्धा तह संजमे विरियं॥ 358 * णासेति असंविग्गो, चउरंगं सव्वलोगसारंगं। नट्ठम्मि य चउरंगे, ण हु सुलभं होति चउरंगं॥ * कम्ममसंखेज्जभवं, खवेति अणुसमयमेव आउत्तो। अण्णयरम्मि वि जोगे, सज्झायम्मी विसेसेणं॥ 454 315 371