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________________ कथाएं : परि-२ 577 पालक को जब स्कन्दक मुनि के आने का वृत्तान्त ज्ञात हुआ तो उसने उद्यान में गुप्त रूप से शस्त्र छिपा दिए। दूसरे दिन पालक ने राजा के पास आकर उसको भ्रमित करने के लिए कहा'स्कन्दक मुनि परीषहों से पराजित होकर यहां आया है। वह बहिन से मिलने के बहाने यहां आपको मारकर राज्य ग्रहण करना चाहता है। यदि मेरी बात पर विश्वास न हो तो आप उद्यान में जाकर देखें, वहां अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र छिपाए हुए हैं।' राजा ने गुप्तचरों को उद्यान में भेजा। छिपे शस्त्रों की बात जानकर राजा का विश्वास स्थिर हो गया। राजा ने सभी मुनियों का निग्रह कर उन्हें पालक पुरोहित को सौंप दिया। पालक ने एक-एक कर पांच सौ मुनियों को कोल्हू में पील दिया। सभी मुनियों ने समतापूर्वक उस वध परीषह को सहन किया। पूर्ण समाधिस्थ रहने से सबको कैवल्य उत्पन्न हुआ और सभी सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए। आचार्य स्कन्दक पास में खड़े थे। उन्होंने यह सारा दृश्य देखा। रुधिर से भरे कोल्हू यंत्र की ओर उनकी दृष्टि गई। उन्होंने कहा-'इस बाल मुनि को मैं यंत्र में पीलते हुए नहीं देख सकता अत: पहले मुझे पील दो।' पर उनके देखते-देखते सैनिकों ने छोटे शिष्य को यंत्र में पील दिया। यह दृश्य देखकर आचार्य स्कन्दक कुपित हो गए। उन्हें सबसे अंत में पीला गया। वे निदान कर अग्निकुमार देव के रूप में उत्पन्न हुए। उसी समय एक गृद्ध आचार्य स्कन्दक के रक्तलिप्त रजोहरण को पुरुष का हाथ समझकर उठाकर ले गया। उसके साथ में पुरंदरयशा द्वारा दत्त कंबल भी था। वह रजोहरण पुरंदरयशा के सामने गिरा। रजोहरण और कंबल को देखते ही पुरंदरयशा ने पहचान लिया कि यह मेरे भाई का है। जब उसे ज्ञात हुआ कि मेरे भाई सहित सभी मुनियों को मरवा दिया गया है तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हो गयी। उसने राजा से कहा-'अरे पापिष्ट राजा! तुमने आज विनाश का कार्य किया है। अब मैं स्वयं भी दीक्षा लेना चाहती हूं।' उसकी प्रबल भावना जानकर देवों ने उसे मुनिसुव्रत स्वामी के पास पहुंचा दिया। उधर अग्निकुमार देव ने निदानं के कारण पूर्वभव का बदला लेने के लिए पूरे नगर को जलाकर भस्म कर डाला। पुत्र और पत्नी सहित पालक को कुत्ते के साथ कुंभी में पकाया गया। आज भी वह क्षेत्र दण्डकारण्य कहलाता है। 8. चाणक्य का अनशन - चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य का महामात्य था। अंतिम समय में उसने गोबर गांव में प्रायोपगमन अनशन स्वीकृत किया। मंत्री सुबुद्धि चाणक्य की प्रसिद्धि को सहन नहीं करता था अतः उसके मन में चाणक्य के प्रति ईर्ष्या के भाव थे। उसने अनशन में स्थित चाणक्य के शरीर के चारों ओर गोबर निर्मित कंडे रखकर उनमें आग लगा दी। चाणक्य का पूरा शरीर जलने लगा लेकिन उसकी धृति किंचित् भी विचलित नहीं हुई 1. जीभा 528-30, उनि 112-14 शांटी प. 115, 116, निभा 5741-43 चू. पृ. 127, 128, बृभा 3272-74 टी पृ. 915,916 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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