________________ 232 जीतकल्प सभाष्य सुबहुत्तरगुणभंसी', छेदावत्तिसु पसज्जमाणो य। पासत्थादी जो वि य, जतीण पडितप्पितो बहुसो॥८१॥ उक्कोसं तवभूमि, समतीतो सावसेसचरणो य। छेदं पणगादीयं, पावति जा धरति परियाओ॥८२॥ 2282. तवबलिओ देह तवं, अहं समत्थो त्ति गव्वितो एस। तवअसमत्थ गिलाणो, बालादी अहव असमत्थो / 2283. जो उ ण सद्दहति तवं, अहवा वी जो तवेण ण वि दम्मे। अतिपरिणामो जो तू, पुणो पुणो सेवति पसंगी॥.. 2284. उत्तरगुण बहुगा तू, पिंडविसोहादिगा उ णेगविधा। भंसेति विणासेती, पुणो पुणो जो तु ताई तु॥ 2285. छेदावत्तीओ वा, पकरेति पसज्जती य जो तेसुं। अहुणा पासत्थादी, आदीसद्देणिमाहंसु॥ 2286. पासत्थोसण्णो वा, कुसील-संसत्त अहव णीओ वा। वेयावच्चकराइण, जतीण पडितप्पितो , बहुसो / / 2287. उक्कोसा तवभूमी, आदिजिणिंदस्स होति वरिसं तु। मज्झिमगाण जिणाणं, अट्ठ उ मासा भवे भूमी // 2288. चरिमस्स जिणिंदस्सा, उक्कोसा भूमि होति छम्मासा। एतं तू उक्कोसं, समतीओ चरणसेसो य॥ 2289. एव जहुद्दिवाणं, तवगव्वितमादियाण सव्वेसिं। छेदं पणगादीयं, देज्जा जा धरति परियाओ // आउट्टियाय पंचिंदियघाते मेहुणे य दप्पेणं। सेसेसुक्कोसाभिक्खसेवणादीसु तीसुं पि॥ 83 // 2290. आउट्टि उवेच्चा तू, पंचिंदि वहेति मिहुण दप्पेणं। सेस वय मुसाऽदिन्नं, परिग्गहो चेव णातव्वो॥ 4. 'कोस अभि' (ब)। 5. दत्तं (ला, ब)। 1. "हुतरगुणब्भंसी (मु), सुबहुउत्त' (ला)। 2. भूमी (पा), भूमी (मु)। 3. इस गाथा के बाद सभी प्रतियों में 'छेदारिहं गयं' का उल्लेख है।